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श्री गौतम कुलकम्
[११] ॥ श्री गौतम कुलकम् ॥ लुद्धा नरा अस्थपरा हवंति,
मूढा नरा काम परा हवंति। बुद्धा नरा खंति परा हवंति,
पिस्सा नरा तिन्नि वि श्रायरंति ॥ १ ॥ ___ लोभी पुरुषों धन का लालवी होते हैं, मुर्ख पुरुषों काम भोग में तत्पर रहते हैं, तत्वज्ञों क्षमा में तत्पर होते हैं, तथा मिश्र पुरुषों धन काम और क्षमा तीनों में तत्पर रहते हैं॥१॥ ते पंडिया जे विरया विरोहे.
ते साहुणो जे समयं चरंति । ते सत्तिणो जे न चलंति धम्म,
ते बंधवा जे वसणे हवंति ॥२॥ जो विरोध से विरमे वे ही सच्चे पण्डित है, जो सिद्धान्तानुसार चलते है वे ही सच्चे साधु है । जो धर्म से विचलित नहो वे ही सच्चे सत्व वंत है तथा जो आपत्ति में अपने सहायक हो वे ही सच्चा बन्धु है ॥ २ ॥