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________________ ( ४१ ) परिव्रणईन चलदस । लेका उप्पन्नसदस्सा य ॥ १ ॥ श्रीमलय गिरयस्तु प्रवेशे च सर्वसंख्यया व्यात्मना सह चतुर्दशभिर्नदीसहस्रैः समन्विता जयंतीति क्षेत्रसमासवृत्ती. कल विजयगत सिंधुनदीं वर्णयंतो महानदीनां न पृथग्गनेति सूचयांचक्रुः तथापि द्वादशांतरनद्यो ऽतिरिच्यंत एवेत्यत्र तत्वं बहुश्रुतगम्यमिति ज्ञेयं. तथापि पूर्वाचार्यानु - रोधात्संख्या तथोदिता || नात्र पर्यनुयोगा । वयं प्राच्यपथानुगाः ॥ ८० ॥ केचित्तु ' गादावइमहानईपवूडासमाली सुकच महाकच विजए हावि जयमाणी अठा नदीन . ॥ १ ॥ श्रीमलयगिरिजी तो प्रवेशमां सर्वसंख्यावडे पोतासाथे चौदहजार नदीनसहित होय वे, एम क्षेत्रसमासनी टीकामां ने कविजयमां रहेली सिंधुनदीने वर्णवतायका महानदीजनी जूदी गणना न करवी एम सूचन करता दवा. तोपण बार अंतरनदीन तो वधारे थाय बेज, माटे तत्व बहुश्रुत जाणे एम जाणवुं. तोपण पूर्वाचार्यना अनुरोधथी ते संख्या कही ने. केमके पूर्वाचार्यना मार्गे चालनारा मो तेमां फेरफार कर वाने लायक नथी. ॥ ८० ॥ केटलाक तो - ' सुकब छाने महाकच विजयमां गादावती महानदी बे फांटामां ·
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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