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________________ ३० ) - षट् । उदीच्यां ततो यथा || ६६ || गंगासिंधू च जश्ते | रोदितारोदितां शिके ॥ हैमवते / दविर्षे | हरिकांताहरी उने / ॥ ६१ ॥ शीताशीतोदे विदेद-क्षेत्रे तथा च रके || नारीकांतारकांते । हैरण्यवत बने ॥ ६८ ॥ रूप्यकूला स्वर्णकूले । तथा चैवतस्थिते ॥ नद्यौ रक्तारक्तवत्या - वेवमेताश्चतुर्दश || ६ || गंगासिंधुरक्तवती - रक्तानां सरितामिह || चतुर्दश सहस्राणि । परिवारः प्र. कीर्तितः ॥ १० ॥ रुप्यकूला स्त्रर्णकूला - रोहितारो दितां पेक्षाये दरेक क्षेत्रमां बबे नदीन वे, वे विदेदोमां वे. ाने तेथी छ दक्षिणमां ने व उत्तरमां बे ॥ ६६ ॥ गंगा ने सिंधु भरतमां बे, रोहिता छाने रोहितांशा हैमवतमां बे. हरिकांता ने दरी हरिवर्षमां वे ॥ ६७ ।। विदेदक्षेत्रमां शीता पने शीतोदा बे, रम्यकमां नारीकां ता ने नरकांता वे, तथा हैरण्यवतमां ॥ ६८ ॥ रुप्यकूला ने खर्णकला ने ने ऐखतमां रक्ता ने रक्तवती बे. एम सर्व मलीने ते चौद नदीन बे. ॥ ६५ ॥ गंगा, सिंधु, रक्तवती ने रक्ता ए चार नदीननो यहीं चौददजारनो परिवार कहेलो वे ॥ ७० ॥ रुप्यकूला. स्व कूला, रोहिता पने रोहितांशा ए चार नदीन पा
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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