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________________ (३३३ ) याश्चांतरापमाः ॥ ६४ ॥ लवणोददिशि हवाः । क्षेत्रसांकीर्यतः स्मृताः ॥ दीर्घाः कालोदककुन्ति । क्षेत्रबाहुव्यतः क्रमात् ।। ६५॥ अष्टानां वनमुखानां । कले दे किस्तृतिर्लघुः ॥ गुरुश्चतुश्चत्वारिंशा-टपंचाशबती भवेत् ।। ॥६६॥ तत्र द्वयोईयोः पूर्वा-परार्धे वर्तिनोस्तयोः ॥ दाराध्यासन्नयोः शीता-शीतोदासीन सा लघुः ॥ ६७ ।। गुरुस्तु नीलनिषधां-तयोरेतच्च युक्तिमत | अमीषां व. लयाकारं । दाराब्धिं स्पृशतां बहिः ॥ ६ ॥ अपरेषां तु अंदर रहेली नदीन, ॥ ६४ ॥ लवणसमुद्रतरफ क्षेत्रनी संकमाशने लीधे अनुक्रमे नानी, तथा कालोदधिसमुद्रतरफ क्षेत्रनी पहोळाश्ने लीधे मोटी . ॥ ६५ ॥ श्राठे वनमुखोनो जघन्य विस्तार बे कलानो, तथा उत्कृष्टो वि. स्तार अठावनसो चमालीस जोजननो . ।। ६६॥ ते मां पूर्वार्ध तथा पश्चिमाधमां लवणसमुद्रनी पासे रहेला बेबे वनमुखोनो शीता तथा शीतोदानी हदमां जघन्य विस्तार में, ॥ ६७ ।। अने नील तथा निषधपर्वतने बेडे उत्कृष्टो विस्तार ने, केमके बहारथी वलयाकार लवणसमुद्रने स्पर्श करनारां ते वनमुखोनो तेवो विस्तार युक्ति युक्त ने ॥ ६७ ॥ तथा कालोदधिना क्लयना अंदरना
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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