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________________ (Nण्६) पृथुमकरकराकृष्टपातीनपीठ-भ्रस्यन्नक्रप्रमोदोखलनचलजलोत्सितमिमीरपि मैः ॥ ५॥ दशभिरादिकुलकं ॥ विश्राश्चर्यदकीर्तिकीर्तिविजयश्रीवाकेंडतिष-द्राजश्रीतनयोऽतनिष्ट विनयः श्रीतेजपालात्मजः ॥ काव्यं यत्किल तत्र निश्चितजगत्तत्वप्रदीपोपमे । संपूर्ति सुखमेकविंशः तितमः सर्गो मनोझोगमत | 09॥ इति श्रीलोकप्रकाशे एकविंशतितमः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥ गायें तेजस्वी थयेल के अंदरनो जाग जेनो एवो, तथा मोटा मगरना हाथथी खेचायला पाठीनपीठजातिना म त्स्योपासेथी पडीजता नमत्स्योना हर्षपूर्वक नछाळाथी चपल थयेला जलथी सीचायेला फीणना पिंडोथी- कोक जगोये प्राप्त करेल ने मोटा जेणे एवो ते लवणसमुद्र ने. ॥ ५५ ॥ दशजिरादिकुलकं ॥ जगतने श्राश्चर्य थापनारी ने कीर्ति जेनी एवा श्रीकीर्तिविजयजीवा. चकेंद्रना शिष्य, तथा राजश्री थने तेजपालना पुत्र एवा श्रीविनयविजयजी महाराजे निश्चित थयेला जगतना तत्वने प्रकाशवामां दीपकसमान एवं जे या काव्य रच्यु , तेमां मनोहर एवो था एकवीसमो सर्ग संपूर्ण थयो. एवीरीते श्रीलोकप्रकाशमां एकवीसमो सर्ग समाप्त थयो.
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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