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________________ ( २०४ ) चंदा सुरा गढ़ा एकता ताराख्वा ' इत्यादि, इति देवताः तिस्रस्तिस्रः पंच शतं । द्वे द्वे द्वात्रिंशदेव च ॥ तिस्रस्तिस्रः षट् पंच । तिस्र एका च पंच च ॥ २० ॥ तिखः पंच सप्त च द्वे । द्वे पंचैकैकिका द्वयोः ॥ पंच चतस्रस्तिखश्च । तत एकादश स्मृताः ॥ ॥ २१ ॥ चतस्रश्च चतस्रश्च । तारासंख्या निजित्क्रमात ॥ ज्ञेयान्युरुविमानानि | ताराशब्दाद्बुधैरिह || २२ || न पुनः पंचमज्योति - मैदगाः किख तारकाः ॥ विजातीयः समुदायी । वि. जातीयच्चयान्न हि || २३ || प्रथीयांसि विमानानि । न यमकुमारो, यमकुमारी, वायुकुमारो, वायुकुमारील, चंद्र, सूर्यो ग्रहो, नक्षत्रो, तारा, श्यादि देवो जावा. aण, त्रण, पांच, सो, बे, बे, बत्रीस, त्रण, वण, ब, पांच, त्रण, एक, पांच, ॥ २० ॥ त्रण, पांच, सात, बे, बे, पांच, बेमां एकेक, पांच, चार, वण, अभ्यार, ॥ २१ ॥ चार ने चार, एरीते अनुक्रमे अजिजितथी मांमीने तासनी संख्या जावी, छपने यहीं ताराशन्दथी वि 5 दान ते नदोनां विमानो जाएवां ॥ २२ ॥ परंतु ज्योतिष्कना पांचमा नेदरूप ताराजने छाहीं न जाणवा, केमके विजातीयना कथनथी समुदायरूप विजातीय ले
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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