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________________ (२०३) मिसेवकन्नावः स्या-द्यसुरेष्वपि नृष्विव ॥ यथा सुकृतमैश्चर्य तेजःशक्तिसुखादि च ॥ १७ ॥ विख्यातौ चंडसूर्यो यौ । सर्वज्योतिष्कनायकौ ।। तयोरप्यपरः स्वामी । परेषां तर्हि का कथा ॥ १५॥ तथा च पंचमांग-स. कस्स देविंदस्स देवरलो सोमस्स महारमो श्मे देवा याणा नववायवयणनिदेसे चिति, तं जहा-सोमकाश्यातिवा सोमदेवकाश्या वा विद्युकुमारा विद्युकुमारोन, अग्गिकुमारा अग्गिकुमारीन, वानकुमारा वानकुमारीन पूर्व नपार्जन करेलां तपनी तरतमताना यनुनावथी जा. एवं. ॥ १७ ॥ जेम मनुष्योमां तेम देवोमां पण स्वामिसेवकनो नाव, तेमज ऐश्वर्य, तेज, शक्ति तथा सुखादिक सघg पुण्यने अनुसारे . ॥ १७ ॥ प्रसिद्ध एवा चं. 5 सूर्य के जे सर्व ज्योतिष्कना नायको , ते नो प. ण ज्यारे बीजो ग्वामी बे, त्यारे अन्योनी शुं वात कर वी? ॥ १५ ॥ पांचमा अंगमां कडं ने के-देवोनो ईद्र, देवोनो राजा, सौम्य तथा महाराजा एवो जे शकेंद्र, तेनी थाझा एट्ले हुकम नठाववामाटे या देवो तैयार रहे , ते देवो नीचेमुजब जेमोमकायना देवो अथवा सोमदेवकायना देवो, विद्युत्कुमारो, विद्युत्कुमारीन,
SR No.022113
Book TitleLok Prakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Shravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1916
Total Pages536
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size34 MB
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