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नाणमओ वि जडो विव पह वि चोरु व जत्थ जाओ सि; भवदुग्गमि किं तथ्थ वससि साहीण सिवनयरे॥३२॥
-ज्ञानमय छतां जड जेवो कां थइ गयो छे ? बळी धणी होवा छतां चोर जेवो कां बनी गयो के ? जे भव दुर्गममा (संसाररुपी, दुःखे प्रवेशाय एवा केदखानामां) मोक्षनगर (मुखे) स्वाधिनमा होवा छता केम वशी रह्यो के? ३२ 5 जथ्थ कसाया चोरा महावया सावया सया घोरा; रोगा दुठभुअंगा आसा सरिआ घणतरंगा ॥३३॥ ___अर्थ:-( भंवरुप दुर्गम शैल-पर्वत केवो छे अने तेने लीला मात्रमा केम भेदाय ते कहे छे.) ज्यां चोरो जेवा | | चार कषाय छे, महा भयंकर हिंसक प्राणी जेवी सदा आपदाओ वसे छे न्यां दुष्ट सो जेवा रोगो आवी रहेला छे || अने घणा तरंगोवाळी नदी जेवी आशा छ, ॥ ३३ ॥ चिंताड्डवी सकठा बहुलतमा सुंदरी दरी दिला; | खाणी गई अनेआ सिहराइं अष्ठमयभेआ॥३४॥
अर्यः-लाकडा सहित अटवी जेवी चिंता छे अने ज्यां घणाज अंधकारवाळी गुहाना जेवी स्त्री देखाय छे, अनेक खीणो होय एवी चार गतियो के, अने जेना आठ भेद छे एका पदना ज्या शिखरो छे, ॥ ३४ ॥ रयणिअरो मिच्छत्तं मणदुक्कडओ सिलातल ममत्तं;