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________________ A सुहझाण नमुक्कारो, लम्भंति पभूयपुण्णेहिं ॥ ९ ॥ अर्थः करेला पाप कृत्यनी आलोचना--निंदा, सारा कृत्यो को होय तेनी अनुमोदना, करेला पाफ्नो छेद करवा १६/8| माटे गुरु महाराजे बतावेला तपy करवू. आचर. शुभ ध्यान धर, अने नवकार महामंत्रनो जाप करवो ए सघळां पानां महा पुत्ययोगे. प्रप्त थइ शके छे. ॥९॥ इयगुणमणिभंडारो, सामग्गी पाविऊण जेणकओ: * विच्छिन्नमोहपासा, लहंति ते सासयं सुख्खं ॥१०॥ अर्थ:-- उपर बताव्या मुजब गुणमणि--रत्नना भंडार जेवां सुकृत्यो, सघळी रुडी सामग्री प्राप्त करीने जे महानुभावो करे छे.-आचरे छे ते पुण्यात्माओ सघळा मोहपासथी सर्वथा मुक्त थइने शाश्वत सुखरुप मोक्ष पदने पामे छे.१० ॥ इति पुण्यप्रभाव प्रदर्शक श्री पुण्यकुलकं ॥ RRIGARCARRRRRRRRRRC अथ दानमहिमागर्भित श्रीदानकुलकम्. | परिहरिअ रजसारो, उप्पाडिअ संजमिक्कगुरुभारो; खंधाओ देवदूसं, विअरंतो जयउ वीरजिणो॥१॥ अर्थ:-समस्त राज्य ऋद्धिनो अनादर करीने संयम संबंधी अनि घणो भार जेपणे उपाड्यो छे अने इन्द्र महाराजे 18दीक्षा समये स्कंध उपर स्थापेलु देवदुष्य वस्त्रपण जेमणे पछाडी लागेला विपने आपी दीधुं ते श्री वीरमभु जयवंता व.१ SCIENCE
SR No.022111
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalabhai Kakalbhai
PublisherBalabhai Kakalbhai
Publication Year1915
Total Pages112
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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