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अर्थः- वननी अंदर एकाकि कृष्ण वासुदेवनुं पोताना माइथोज जो कर्म न हो तो मरण केम थाय. ? ॥ १८ ॥
नावारुढस्स उवसग्गो वद्धमाणस्स दारुणो सुदाढाओ कहं तो न हुतं जइ कम्मयं ॥ १९॥
अर्थः- जो कर्म न मानीये तो नाव उपर चडेला श्रीमान् वर्द्धमान स्वामिने सुदृट्टयो भयंकर उपसर्ग केम थाय. ? ॥ १९ ॥
पासनाहस्स उवसग्गो गाढो तिथ्थंकरस्स वि; कमठाओ कहं तो न हुतं जइ कम्मयं ॥ २० ॥
अर्थ:- तीर्थकर परमात्मा पार्श्वनाथ महाराजने कपडयी आकरो उपसर्ग थयो तेवां कर्मज कारण छे. ॥ २० ॥
अणुत्तरा सुरासाया सुख्ख सोहग्गलीलया; कहें पार्वति चवर्ण न तं जइ कम्मयं ॥ २१ ॥
:- अनुत्तर विमानवासि श्रेष्ठ देवो जेओ के सुखनी पूरी सामग्रोथी युक्त छे ते पण व्यवी मृत्युलोकमां आवे छे तेनुं कारण कर्मज मानवुं पडशे ॥ २१ ॥
॥ इति श्रीकर्मकुलकं संपूर्ण ॥
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