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ते य विसेसेण सुभसवादओऽणुत्तरामरसुहं च।
दोण्हं सुक्काण फलं परिनिव्वाणं परिल्लाणं ॥१४॥ शुभ कर्मों का बन्ध और अनुपम देवसुख ये विशेष रूप से पहले दो शुक्ल ध्यानों के फल हैं। बाद के दो शुक्ल ध्यानों का फल मोक्ष की प्राप्ति है।
आसक्दारा संसारहेयवो जंण धम्म-सुक्केसु ।
संसारकारणाइ तओध्रुवं धम्म-सुक्काई॥६५॥ संसार का कारण कर्मों का आस्रव है। चूंकि धर्मध्यान और शुक्ल ध्यान में कर्मों का आस्रव नहीं होता इसलिए धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान संसार के नहीं मोक्ष के कारण हैं।
संवर-विणिज्जराओ मोक्खस्स पहो तवो पहो तासिं।
झाण च पहाणंगंतवस्स तो मोक्खहेऊयं ॥६॥ संवर और निर्जरा से मोक्ष मिलता है। लेकिन संवर और निर्जरा की प्राप्ति तप से होती है। तप का प्रधान तत्त्व ध्यान है। इसलिए ध्यान मोक्ष का कारण है।
अंबर-लोह-महीणं-कमसोजह मल-कलंक-पंकाणं। सोज्झावणयण-सोसे साहेति जलाऽणलाऽऽइच्चा ॥१७॥ तह सोज्झाइसमत्था जीवंबर-लोह-मेइणिगयाणं।
झाण-जलाऽणल-सूरा कम्म-मल-कलंक-पकाणं ॥८॥ जिस प्रकार जल वस्त्र के मैल को, आग लोहे की जंग को और सूर्य पृथ्वी के कीचड़ को खत्म कर डालता है, उसी प्रकार ध्यान आत्मा से संलग्न कर्म के मैल को खत्म कर देता है।
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