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१३०
३९६
३३२
दुविहासत्तीए [व्यव० सू० १/९६१] दुहओ वि ते ण [सूत्रकृताङ्ग १/११/२१] देवगुणपरिन्नाणा [सम्बोधप्रक० २०३] देवगुणप्रणिधाना० [षोडशक ५/१४] देवोद्देशेनैतद् [षोडशक ६/१२] देशं कालं [प्रशमरति १४६] देहादिणिमित्तंपि [पञ्चाशक ४/४५] दो दिसाओ [स्थानाङ्ग २/१/७६] द्रागस्मात्तद्दर्शन० [षोडशक १५/१०]
१९७ १३८
२८६ ३०८
४८६
ध
धन्नाणं विहिजोगो [सम्बोधप्रक० ८४४, दर्शनशुद्धिप्रक० २८] . ३९५ धम्मकंखिए पुण्णकंखिए [भगवती १/७/६२] ४७१ धर्मश्चित्तप्रभवः [षोडशक ३/२ पा० १] धर्माङ्गख्यापनार्थं [अष्टक २७/३] १३६ धर्मार्थं यस्य वित्तेहा [अष्टक ४/६] १५७,२७०
४७६
१५७
परिशिष्ट - ३ साक्षिपाठानामकारादिक्रमः)
प पच्छा कडुअविवागा [उत्तरा० १९/११ पा० ३] ८६ पढमकरण. [विंशि० प्रक० ८/८]
११२ पढमाणुदयाभावो [विंशि० प्रक० ६/१६] २५७ पढमा पढमा० [विंशि. प्रक०८/६] १११ पढमेण नंदणवणं [विशेषाव. ७९०]
४१ पढमेण माणुसोत्तर० [विशेषाव० ७८९]] ४१ पढमेणं पंडगवणं [विशेषाव. ७८८] पढमे दंडसमादाणे [सूत्रकृताङ्ग २/२/१७] २९२ पराभवे तथोत्कर्षे [आख्यातचन्द्रिका] पराभिसन्धिम० [अन्ययोग द्वात्रिं० २० पू.] ४७७ परिणमदि जेण दव्वं [प्रवचनसार १/८] ४७४ परिणामासयवसओ [विशेषाव. १९४४] ४३३ परिणामियं पमाणं [ओघनियुक्ति ७६०] १७९ पर्यायोक्तव्यङ्ग [काव्यानुशासन ६/९] ११४ पापंच राज्य० [अष्टक ४/४] पावं छिंदइ [आव० नि० १५०८]
३०९ पुढवी आउक्काए [ओघनियुक्ति २७६] पुत्तं पिया [सूत्रकृताङ्ग १/१/२/२८] पुप्फवद्दलयं [राजप्रश्नीय सू० २३].
४४८ पुव्वगहियं च कम्मं विशेषाव. १९३८] पुव्वाणुपुब्वि [आव. नि० १००८]
२९ पुव्वाभिमुहो॰ [विशेषाव० ३४०६] पुष्पामिषस्तुति.
२६७ पूआविहिविरहाओ [सम्बोधप्रक० २०५] ३९६ पूजया विपुलं [अष्टक ४/३] |
१५७ पंचण्हं गहणेणं [बृहत्कल्पभा० ५६२० पू०] २१४ पंचहिं ठाणेहिं ...दुल्लह० [स्थानाङ्ग ५/२/४२६] ११५ पंचहिं ठाणेहिं ...सुलह॰ [स्थानाङ्ग ५/२/४२६] ११७ प्रकाशितं यथैकेन
२७९ प्रतिमाश्च विविधा० [श्राद्धविधि]
३९७ प्रमादयोगात् [तत्त्वार्थ ७/८] प्रयाणभङ्गाभावेन प्रवृत्तिहेतुं धर्मं [विधिविवेक
४२२ प्रशमरसनिमग्नं
३४ प्राणी प्राणिज्ञानं [सूत्रकृताङ्ग १/१/२/२५ टी०] १८६
१६६ १८७
२९
४३१
३०८
नईसंतरणे पडिक्कमइ
२०८ नणु मणवइकाय॰ [विशेषाव. १९३६] ४३० ननु नारकस्य [प्रज्ञापना २२/२८२ टी.] १८२ नवि संखेवो [आव. नि० १००६] न कामभोगा [उत्तरा० ३२/१०१]
२७७ न च स्वदान. [द्वात्रिं. द्वात्रिं० १/१९]
१३७ न परीक्षां विना न य साहारणरूवं [विशेषाव. १९३४ उत्त०] ४२९ नागादे रक्षणं [अष्टक २८/७]
२१९ नाणावरणिज्जस्स [आव. नि. ८९३] नामठ्ठवणादविए [आव० भा० १९१]
२७८ नियदव्वमउव्व० [भक्तपरिज्ञा ३१]
३३९ नियमा जिणेसु [आव० नि० ११३६]
४०४ निर्वाणसाधनं [षोडशक १५/४]
४८४ निस्सकडम० [बृहत्कल्पभा. १/१८०४] नीयावासविहारं [आव. नि० ११७५] नृशंसदुर्बुद्धि० [अयोग० द्वात्रिं. १० उत्त०] नोत्सृष्टमन्यार्थम० [अन्ययोग द्वात्रिं. ११ पा० २] २६६ न्यायचर्चेय [न्यायकुसुमाञ्जलि ३]
४७६
२९१
३३५
३९८ २४८
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