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श्राद्धविधि प्रकरण श्रावक का स्वरूप (मूल ग्रन्थ ४ थी गाथा) नामाई चउभेओ। सवा भावेण इथ्थ अहिगारो॥
तिविहो अ भावसढो । दसण वय उत्तरगुणेहिं ॥४॥ श्रावक चार प्रकार के हैं। १ नाम श्रावक, २ स्थापना श्रावक, ३ द्रव्य श्रावक, ४ भाव श्रावक, ये चार निक्षेपे गिने जाते हैं।
१ नाम श्रावक-जो अर्थशन्य हो यानी जिस का जो नाम रक्खा हो उस में उस के विपरीत ही गुण हों, अर्थात् नामानुसार गुण न हों, जैसे कि लक्ष्मीपति नाम होते हुए भी निर्धन हो, ईश्वर नाम होते हुवे भी वह स्वयं किसी दूसरे का नौकर हो, इस प्रकार केवल नामधारी श्रावक समझना । इसे नाम निक्षेप कहते हैं।
२ स्थापना श्रावक-किसी गुणवंत श्रावक की काष्ट या पाषाणादि की प्रतिमा या मूर्ति जो बनाई जाती है उसे स्थापना श्रावक कहते हैं । यह स्थापना निक्षेप गिना जाता है।
३ द्रव्य श्रावक-श्रावक के गुण तथा उपयोग से शून्य । जैसे कि चंडप्रद्योतन राजा ने जाहिर कराया था कि, जो कोई अभयकुमार को बांध लावेगा उसे मुंह मांगा इनाम दिया जायगा। एक वेश्याने यह बीड़ा उठाकर विचार किया कि, अभयकुमार शुद्ध श्रावक होने के कारण वह उसो प्रकार के प्रयोग बिना अन्य किसी भी प्रकार से न ठगा जायगा, यह विचार कर उसने श्राविका का रूप धारण कर अभयकुमार के पास जाकर कितनी एक श्राविका की करणी की और अंतमें उसे अपने कब्जे किया। इस संबंध में वेश्याने श्रावक का आचार पालन किया परंतु सत्य स्वरूप समझे बिना बाह्य क्रिया द्वारा दूसरे को ठगने के लिए पाला था, इस से वह दंभपूर्ण आचार उसे निर्जरा का कारण रूप न बन कर उलटा कर्मबंधन का हेतु हुवा। इसे 'द्रव्य. श्रावक' समझना चाहिए । यह द्रव्य निक्षेप गिना जाता है।
४ भावश्रावक-परिणाम शुद्धि से आगम सिद्धांत का जानकार (नवतत्व के परिज्ञानवंत ) तथा चौथे गुणस्थान से लेकर पांचवें गुणस्थान तक के परिणाम वाला ऐसा भाव श्रावक समझना । यह भावनिक्षेप गिना जाता है।
जैसे नाम गाय होने पर उस से दूध नहीं मिलता और नाम शर्करा होने पर मिठास नहीं मिलती, वैसे ही माम श्रावकपन से कुछ भी आत्मा की सिद्धि नहीं होती । एवं श्रावक की मूर्ति या फोटो (स्थापना निक्षेपा) हो तो भी उस से उस के आत्मा को कुछ फायदा नहीं होता तथा द्रव्य श्रावक से भी कुछ आत्मकल्याण नहीं होता। इसलिये इस ग्रन्थ में भावश्रावक का अधिकार कथन किया जायगा। ___ भावभावक के तीन भेद हैं । १ दर्शनश्रावक, २ व्रतश्रावक, और ३ उत्तरगुणश्रावक । - . १ दर्शन श्रावक-मात्र सम्यक्त्वधारी, चतुर्थ गुणस्थानवती, श्रेणिक तथा कृष्ण जैसे पुरुष समझना। .
२ व्रत श्रावक-सम्यक्त्वमूल स्थूल अणुवत धारी। (पांच अणुव्रत धारण करने वाला १ प्रणातिपात त्याग, २ असत्य त्याग, ३ चोरी त्याग, ४ मैथुन त्याग,५ परिग्रह त्याग, ये पांचों स्थूलतया त्यजे जाते हैं।