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श्राद्धविधि प्रकरण Airimini woman . . यस्य पुत्रा वशे भक्त्या भायाछंदानुवर्तिनी ।
विभवेष्वपि संतोषस्तस्य स्वर्ग इहैव हि ॥ १॥ जिसके पुत्र आज्ञा में चलनेवाले हों और स्त्री चित्त के अनुकूल वर्तती हो और वैभव में संतोष हो उसके लिए सचमुच ही यह लोक भी स्वर्ग के सुख समान है ।
एक दिन सोम सेठ अपनो स्त्री सोमश्री को साथ लेकर उद्यान में क्रीडा करने के लिए गया । उस वक्त सुरकांत राजा भी दैवयोग से वहां आ पहुंचा । वह लंपटी होने के कारण सोमश्री को देखकर तत्काल ही रागरूप समुद्र में बहने लगा, इससे उसने कामांध हो उसी समय सोमश्री को बलात्कार से अपने अंतःपुर में रख लिया। कहा भी है कि
यौवनं धनसंपत्ति प्रभुत्वमविवेकता ।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयं ॥ २॥ यौवन, धनसंपदा, प्रभुता और अविवेकता, ये एक एक भी अनर्थकारक हैं, तो जहां ये चारों एकत्रित हों वहां तो कहना ही क्या है ? अर्थात् ये महा अनर्थ करा सकती हैं।
राज्य लक्ष्मी रूप लता को अन्याय रूप अग्नि भस्म कर देने वाली है तो राज्य की वृद्धि चाहने वाला पुरुष परस्त्री की आशा भी कैसे कर सकता है। दूसरे लोग अन्याय में प्रवृत्ति करें तो उन्हें राजा शिक्षा कर सकता है परन्तु यदि राजा ही अन्याय में प्रवृत्ति करे तो सचमुच वह *मत्स्यगलागल न्यायके समान ही गिना जाता है। बिचारा सोमश्रेष्ठि प्रधान आदि के द्वारा शास्त्रोक्ति एवं लोकोक्ति से राजा को समझाने का प्रयत्न करने लगा परन्तु वह अन्यायी राजा इससे उलटा क्रोधित हो सेठ को गालियां सुनाने लगा किंतु स्त्री को वापिस नहीं दी। सचमुच ही राजा का इस प्रकार का अन्याय महा. दुःखकारक और धिःकारने के योग्य है । समझाने वाले पर भी वह दुष्ट ग्रीष्म ऋतु के सूर्य की किरणों के समान अग्नि की वृष्टि करने लगा । उस समय मंत्री सामत आदि सेठ को कहने लगे कि जिस तरह सिंह या जंगली हाथी का काम नहीं पकड़ा जा सकता वैसे ही इस अन्यायी राजा को समझाने का कोई उपाय नहीं। क्यों कि खेत के चारों तरफ वाड़ खेत की रक्षा के लिए की जाती है परन्तु जब वह वाड़ ही खेत को खाने लगे तो उसका कुछ भी उपाय नहीं हो सकता। लौकिक में भी कहा है कि
माता यदि विषं दद्यात् विक्रीणीत सुतं पिता ।
राजा हरति सर्वस्वं का तत्र परिवेदना ।।३।। यदि माता स्वयं पुत्र को विष दे, पिता अपने पुत्र को बेचे, और राजा प्रजा का सर्वस्व लूटे तो यह दुःखदाई वृत्तान्त किसके पास जाकर कहें ? '
* मस्स्यगलागलन्याय सम्मान में रहे हुए बडे मत्स्य अपनी ही जाति के छोटे मत्स्यों को निगल जाते हैं।
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