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________________ ३८५ श्राद्धविधि प्रकरण आया है। पर्व तिथिका पालन शुभ आयुष्यके बंधनका हेतु होनेसे महा फलदायक है। इसलिये कहा है कि: ___ "भयवं बीम पमुासु पंचसुतिहीसु विहिन धम्माणुठाणं किं फलो होई गोत्रमा बहु फलं होइ। जमा एमासु तिहिसु पाएएंजीवो पर भवाल समज्जिणई । तम्हा तवो बिहाणाई धम्माणुठठा कायव्वं ॥ जम्हा सुहाउभं समज्जिणई। हे भगवन ! द्वितीया प्रमुख तिथियोंमें किया हुआ धर्मका अनुष्ठान क्या फल देता है ? (उत्तर) है गौतम! बहुत फल देता है । इस लिये इन तिथियोंमें विशेषतः जीव परभव का आयु बांधता है अतः उस दिन विशेष धर्मानुष्ठान करना कि जिससे शुभ आयुष्यका बंध हो, यदि पहलेसे आयुष्य बँध गया हो तो फिर बहुतसे धर्मानुष्ठान करने पर भी वह टल नहीं सकता। जैसे कि श्रेणिक राजाने क्षायक सम्यक्त्व पाने पर भी पहले गर्भवती हिरनीको मारा था और उसका गर्भ जुदा पड़ा देखकर अपने स्कंधके सन्मुख देख (अभिमानमें आकर) अनुमोदना करनेसे तत्काल ही नरकके आयुष्य का बंध कर लिया। (फिर वह बंध न टूट सका वैसे ही आयुष्यका बंध टल नहीं सकता) पर दर्शनमें भी पर्वके दिन स्नान मैथुन आदिका निषेध किया है। बिष्णुपुराणमें कहा है कि: चतुर्दश्यष्टमी चैव । अमावास्या च पूर्णिमा ॥ पर्वाण्ये तानि राजेंद्र ! रविसंक्रांतिरेव च ॥१॥ तैलस्त्रोमांससंभोगी। पर्वष्वे तेष वै पुमान् । विए मुत्र भोजनं नाम। प्रयाति नरकं मृतः॥२॥ . हे राजेंद्र ! चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस, पूर्णिमा, सूर्यसंक्रांति, इतने पोंमें तैल मर्दन करके स्नान करे, स्त्री संभोग करे, मांस भोजन करे तो उस पुरुषने विष्टाका भोजन किया गिना जाता है, और वह मृत्यु पा कर नरकमें जाता है। मनुस्मृतिमें कहा है कि: अमावास्या मष्टी च । पौर्णमासी चतुर्दशी ॥ ब्रह्मचारी भवेन्निस । ममृतौ स्नातको द्विजः॥१॥ ___ अमावस्या, अष्टमी, पौर्णिमा, चतुर्दशी इतने दिनोंमें दयावन्त ब्राह्मण निरन्तर ब्रह्मचारी ही रहता है। इसलिये अवसर की पर्वतिथियों में अवश्य ही सर्व शक्तिसे धर्मकार्यों में उद्यम करना। भोजन पानीके समान अवसर पर जो धर्मकृत्य किया जाता है वह थोड़ा भी महा फल दायक होता है। इसलिये वैद्यक शास्त्रों में भी प्रसंगोपात यही बात लिखी है कि:शरदि यज्जलं पीतं । यदुक्त पोषपाघयोः॥ जेष्ठापाढे च यत्सुप्त । तेन जीवंति मानवाः॥१॥ ____ जो पानी शरद ऋतुमें पीया गया है और पोष, महा मासमें जो भोजन किया गया है, जेठ और आषाढ़ मासमें जो निद्रा लो गई है उससे प्राणियोंको जीवित मिलता है। बर्षासु लबणमृतं। शरदि जलं गोपयश्च हेमन्ते ॥ शिशिरे चायल करसो। घृतं वसंते गुडश्चाते वर्षा ऋतुमें नोन (नमक ) अमृत समान है, शरद ऋतुमें पानी अमृत समान है, हेमंत ऋतुमें गायका दूध, शिषिर ऋतुमें खट्टा रस, वसंत ऋतुम घी, ग्रीष्म ऋतुमें गुड़ अमृतके समान है। .
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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