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श्राद्धविधि प्रकरण राजप्रसादे स्थिरधी, रन्यायेन विवर्धिषुः॥
अर्थहीनोर्थकार्याथी, जने गुह्य प्रकाशकः ॥२४॥ ८६ राजाकी कृपामें निर्भय रहे । ६० अन्याय करके विशेष वृद्धि करनेकी इच्छा रख्खे। ११ दरीद्रीके पाससे धन प्राप्त करनेकी इच्छा रख्खे । ६२ अपनी गुप्त बात लोगोंसे प्रकाशित करे ।
अज्ञातपतिभूः कीत्यौः हितबादिना मत्सरी॥
सर्वत्र विश्वस्तपनो, न लोक व्यवहारविद ॥२५॥ ६३ कीर्तिके लिये अज्ञात कार्यमें गवाही दे। या साक्षी हो। १४ हित बोलने वाले के साथ मत्सर रख्खे । ६५ मनमें सर्वत्र विश्वास रख्खे । ६६ लौकिक व्यवहारसे अज्ञात रहे।
भिक्षुकश्चोष्णभोजी च, गुरुश्च शिथिलक्रियः॥
कुकर्मण्यपि निर्लज्जः, स्यान्मूर्खश्च सहासगीः ॥ २६ ॥ ६७ भिक्षुक होकर उष्ण भोजनकी इच्छा रक्खें। गुरु होकर करने योग्य क्रियामें शिथिल बने । ६६ खराव काम करनेसे भी शरमिन्दा न हो। १०० महत्वकी बात बोलते हुए हसता जाय।
उपरोक्त मूर्खके सौ लक्षण बतलाये, इनके सिवाय अन्य भी जो हानि कारक और खराब लक्षण हों सो भी त्यागने योग्य हैं । इस लिए विवेक विलास में कहा है कि जंभाई लेते हुए, छींकते हुए, डकार लेते हुए, हसते हुए इत्यादि काम करते समय अपने मुखके सन्मुख हाथ रखना। सभामें बैठ कर नासिका शोधन, हस्त मोडन, न करना। सभामें बैठकर पलौथी न लगाना। पैर न पसारना, निन्दा विकथा न करना, एवं अन्य भी कोई कुत्सित क्रिया न करना। यदि सचमुच हसने जैसा ही प्रसंग आवे तो भी कुलीन पुरुषको जरा मात्र स्मित-होंठ फरकने मात्र ही हास्य करना, परन्तु अट्टहास्य-अति हास्य न करना चाहिये। ऐसा करना सज्जन पुरुषके लिए बिलकुल अनुचित है। अपने अंगका कोई भाग बाजेके समान बजाना, तुणोंका छेदन करना, व्यर्थ ही अंगुलिमे जमीन खोदना, दांतोंसे नख कतरना इत्यादि क्रियायें उत्तम पुरुषोंके लिए सर्वथा त्यागनीय हैं। यदि कोई चतुर मनुष्य प्रशंसा करे तो गुणका निश्चय करना । मैं क्या चीज हूं; या मुझमें कौनसे गुण हैं, कुछ नहीं ? इस प्रकार अपनी लघुता बतलाना। चतुर मनुष्य को यदि किसी दूसरेको कुछ कहना हो तो विवार करके उसे प्रिय लगे ऐसा बोलना। यदि नीच पुरुषने कुछ दुर्वचन कहा हो तो उसके सामने दुर्वचन न बोलना। जिस बातका निर्णय न हुवा हो उस बात सम्बन्धी किसी भी प्रकारका निश्चयात्मक अभिप्राय न देना। नो कार्य दूसरेके पास कराना हो उस पुरुष को प्रथमसे ही अन्योक्ति दृष्टान्त द्वारा कह देना कि यह काम करनेके लिए हमने अमुकको इतना दिया था, अब भी जो करेगा उसे अमुक दिया जायगा। जो बचन स्वयं बोलना हो यदि वही बचन किसी अन्यने कहा हो तो अपने कार्यकी सिद्धि के लिए वह वचन प्रमाण-मंजूर कर लेना। जिसका कार्य न किया जाय उसे अषमसे ही कह देना चाहिए कि भाई ! यह काम मुझसे न होगा! परन्तु अपनेसे न होते हुए कार्यके लिए दूसरेको कदापि दिलासा न देना; या कार्य करनेका भरोसा न देना। विवक्षण पुरुषको यदि कभी