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________________ श्रादविधि प्रकरण प्रधान है। अन्य भी काय करने में प्रायः मैं ही आगे रहती हूं। किसीको मेरे द्वारा वस्तु बतलाने में, निशानी। करनेमें, दूसरेको बर्जन करनेके चिन्ह में यानी नाकके आगे अंगुलि दिखला कर निषेध करने में इत्यादि सब कामोंमें मैं ही अग्रसरी पद भोगती हूं। ( मध्यमा कहती है ) परन्तु तुझमें क्या गुण है ? - मध्यमा बोली-"चल चल ! मूखी, तू तो मुझसे छोटी है। देख सुन! मैं अपने गुण बतलाता हूं, वीणा बजाने में, सितार बजाने में, सारंगी सितारेके तार मिलाने में, ऐसे अनेक उत्तम कार्योंमें मेरी ही मुख्यता है, किसी समय जल्दीके कार्यमें चुकटी बजा कर अनर्थके कार्य अटकाने या भूतादि दोषके छलनेको दूर करनेके कार्यमें और मुद्रा वगैरह रचना, दिखलानेके कार्यमें मेरी ही प्रधानता है। तेरे बतलाये हुये चिन्होंसे उत्पन्न हुये दोषोंको अटकाने के लिए बतलाये जाते हुए मेरे चिन्ह में मैं ही आगेवानी भोगती हूं, तु क्यों व्यर्थकी बड़ाई करती है तेरेमें अवगुणके सिवाय और है ही क्या ! तू और अंगूठा दोनों मिलकर नाकका मैल निकालने के सिवा और काम ही क्या करते हो !" __अनामिका अंगुलि बोली-"तुम सबसे मैं अधिक गुणवाली हूं और मैं तुम सबके पूजनीया हूं। देव, गुरु, स्थापनाचार्य, स्वर्मिक वगैरहकी नवांगी पूजा, चन्दन पूजा, मांगल्य कार्यके लिये स्वस्तिक करने, नन्दावादि करने, जल, चन्दन, वास, आदिको, मन्त्रमें, माला गिनने वगैरह कितने एक शुभ कृत्योंमें मैं ही अन पद भोगती हूं।" कनिष्ठा अंगुलि बोली-“मैं सबसे पतली हूं तथापि कानकी खुजली को दूर करनेके कार्यमें, अन्य किसी भी बारीक कार्यमें, भूत प्रेतादिक दूर करनेके कार्यमें मैं ही प्राधान्य भोगती हूं।” इस प्रकार वारों अंगुलियां अपने २ गुणसे गवित हो जानेके कारण पांचवां अंगुठा बोला-"तुम क्या अपनी बड़ाई करती हो ? तुम सब मेरी स्त्रियां हो और मैं तुम्हारा पति हूँ। तुममें जो गुण हैं वे प्रायः मेरी सहायता विना निकम्मे हैं। जैसे कि, लिखने चित्र निकालने की कला, भोजनके समय, ग्रास ग्रहण करना, चुटकी बजाना, गांठ लगाना, शस्त्र वगरहका उपयोग करना, दाढी वगरह समारना। कतरना, लोंच करना, पीजना, धोना, कूटना, दलना, पीसना; परोसना, कांटा निकालना, गाय भैंसको दूहना, जाप करना, संख्या गिनना, केश गूथना, फूल गूंथना, शत्रुकी गर्दन पकड़ना, तिलक करना, श्री तीर्थंकर देवके कुमार अवस्थामें, देवता द्वारा संचरित किया हुवा अमृत मुझमें ही तो होता है इत्यादि कार्य मेरे बिना हो नहीं सकते, इन सबमें मैं ही प्रधान हूं।" यह बात सुनकर उन चारों अंगुलियोंने परस्पर संप किया और अंगूठेका आश्रय ले उसकी पत्नी तया रहीं। जिससे सबकी सब सुख पूर्वक अपना निर्वाह करने लगी, इसलिये संप रखमेसे कार्यकी शोभा होती है। "गुरुका उचित" एमाइ सयणो चित्र, मह धम्मायरियस्स मुचि भणियो, मचि बहुमाणपुव्वं, पेसि तिसं झपि पणिवायो,
SR No.022088
Book TitleShraddh Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherAatmtilak Granth Society
Publication Year1929
Total Pages460
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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