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श्राद्धविधि प्रकरण राजाओंके संग्राममें लड़ते हुए हाथीके दन्तशल पर, बनजारे वगैरह पामर लोगोंके बैलके स्कन्ध पर सुभट सिपाहियोंके तलवारकी अणी पर और वेश्याके पुष्ट स्तन पर लक्ष्मी निवास कुरती है । (अर्थात् उपरोक्त कारणसे उनकी आजीविका चलतो है) इसलिए पशुपाल्य आजीविका पामर जनके उचित है। यदि दूसरे किसी उपायसे आजीविका न चल सकती हो तो कृषि आजीविका भी करे । परन्तु हल चलाने वगैरह कार्यमें ज्यों बने त्यों उसे दयालुता रखनी चाहिये । कहा है कि,:
वापकाल्यं विजानाति । भूमिभागं च कर्णकः ॥
कृषिसाध्या पथिक्षेत्र । यश्चोझ्झति स वर्द्धते ॥ ___ जो कृषक बोनेका समय जानता हो, अच्छी बुरी भूमिको जानता हो, बिना जोते न बोया जाय ऐसे और आने जानेके मार्गके बोचका जो क्षेत्र हो उसे छोड़े वह किसान सर्व प्रकारसे वृद्धिमान है ।
पाशुपाल्यं श्रियो द्धये । कुर्वन्नोझझेव दयालुतां॥
तत्कृत्येषु स्वयं जाग्र । च्छविच्छेदादि वर्जयेत् ॥ आजीविका चलाने के लिए यदि कदाचित् पशुपाल्य वृत्ति करे तथापि उस कार्यमें दयालुता को न छोड़े, उन्हें बाँधने और छोड़नेके कार्यको स्वयं देखता रहे और उन पशुओंमें बैल वगैरह के नाक, कान, भंड, पूंछ, चर्म, नख वगैरह स्वयं छेदन न करे । पांचवीं शिल्प-आजीविका सौ प्रकारकी है । सो बतलाते हैं।
पंचेवयसिप्पाइ । धणलोहेचित्तऽणंतकासवए ॥
इक्विकस्सयइत्तो । वीसंवीसं भवे भेया॥ कुभकार, लुहार, चित्रकार, वणकर-जुलाहा, नाई, ये पांच प्रकारके शिल्प हैं। इनमें एक एकके बीस २ भेद होनेसे सौ शिल्प होते हैं। यदि व्यक्तिको व्यवक्षा की हो तो इससे भी अधिक शिल्प हो सकते हैं। यहां पर 'प्राचार्योपदेशजं शिल्पं' गुरुके बतलानेसे जो कार्य हो वह शिल्प कहलाता है। क्योंकि ऋषभदेव स्वामीने स्वयं ही ऊपर बतलाये हुए पांच शिल्प दिखाये हुए होनेसे उन्हें शिल्प गिना है। आचार्यकगुरुके बतलाये बिना जो परम्परासे खेती, व्यापार वगैरह कार्य किये जाते हैं उन्हें कर्म कहते हैं। इसी लिये शास्त्र में लिखा है कि
__ कम्मं जमणायरिओ। वएसं सिप्पमन्नहा भिहि॥
किसिवाणिजाईन। घडलोहाराई भेनंच ॥ - जो कर्म हैं वे अनाचार्योपदेशित होते हैं याने आचार्योंके उपदेश दिये हुए नहीं होते; और शिल्प आवा. योपदेशित होते हैं। उनमें कृषि वाणिज्यादिक कर्म और कुम्भकार, लुहार, चित्रकार, सुतार, नाई ये पांच प्रकारके शिल्प गिने जाते हैं। यहां पर कृषि, पशुपालन, विद्या और व्यापार ये कर्म बतलाये हैं। दूसरे कर्म तो प्रायः सब ही शिल्प वगैरह में समा जाते हैं। स्त्री पुरुषकी कलायें अनेक प्रकारसे सर्व विद्यामें समा जाती है। परन्तु साधारणतः गिना जाय तो कर्म चार प्रकारके बतलाये हैं। सो कहते हैं
उचमा बुद्धिकर्माणः। करकर्मा च मध्यमाः।