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श्राद्धविधि प्रकरण
बीमारी सेवा करने पर कीड़े और कोढसे पीड़ित हुए साधुका उपाय करनेवाले ऋषभदेव का जीव जीवानन्द नामा वैद्यका दृष्टान्त समझना । एवं सुस्थान में साधुको ठहरानेके लिये उपाश्रय वगैरह दे इसलिए शास्त्र में कहा है कि, :
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वसहि सयणासण । भत्तपाण भसज्ज वथ्ययताई ॥ जइ विन पज्जच घणो थोवाविहु थोयदेई ॥ १ ॥
वसति, उपाश्रय, सोनेका आसन, भात पानी, औषध, वस्त्र, पात्रादिक यदि अधिक धन न हो तो भी थोड़े से थोड़ा भी देवे ( साधुको वहरावे )
जयन्ती कचूलाद्याः कोशाश्रयदानतः ॥
अवन्ति सुकुमालश्च । तीर्णाः सांसर सागरं ॥ २ ॥
साधुको उपाश्रय देने से जयन्ती श्राविका, वंकचूल प्रमुख, अजन्ति सुकुमाल, कोशा श्राविका आदि संसार रूप समुद्रको तर गये हैं।
"जैन के द्वेषी और साधु निन्दकको शिक्षा देना "
श्रावक सर्व प्रकार के उद्यमसे जिन प्रवचन के प्रत्यनीक - जैनके द्वेषीको निवारण करे अथवा साधु गैरहकी निंदा करनेवालों की भी यथायोग्य शिक्षा करे । तदर्थ कहा है कि,
तहासामध्ये प्राणाभट्ट मिनोखलु उवेहो । अनुकुलेहिं इमरेहिं । च
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सट्टी होइ दायव्वा ॥ ३ ॥
उपेक्षा न करके मीठे वचनसे अथवा कटु वचनसे भी
शक्ति होने पर भी आज्ञा भंग करनेवाले को उन्हें शिक्षा देना ।
जैसे अभयकुमार ने अपनी बृद्धिसे जैन मुनिके पास दीक्षा लेनेवाले एक भिखारी की निन्दा करने वालोंको निवारण किया था वैसे ही करना ।
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जैसे साधुको सुख साता पूछना बतलाया वैसे ही साध्वीको सुख साता पूछना | परन्तु इसमें विशेष इतना समझना कि, उन्हें दुःशील तथा नास्तिकोंसे बवाना । अपने घरके चारों तरफसे सुरक्षित और गुप्त दरवाजे वाले घरमें रहनेको उपाश्रय देना । अपनी स्त्रियोंसे साध्वीको सेवा भक्ति कराना । अपनी लड़की बगैरह को उन्होंके पास नया अभ्यास करनेके लिए भेजना तथा व्रतके सन्मुख हुई स्त्री, पुत्री, भगिनी, वगैरहको उन्हें शिष्यातया समर्पण करना । विस्मृत हुए कर्तव्य उन्हें स्मरण करा देना, उन्हें अन्यान्य की प्रवृत्तिसे बचाना । एक दफा अयोग्य बर्ताव हुवा हो तो तत्काल उन्हें सीख देकर निवारण करना । दूसरी दफा अयोग्य बर्ताब हो तो निष्ठुर बचन बोलकर धमकाना । यदि वैसा करने पर भी न माने तो फिर खर- वाक्य कह कर भी ताड़ना तर्जना करना । उचित सेवा भक्तिमें अवित्त वस्तुएं देकर उन्हें सदैव विशेष प्रसन्न रखना ।
गुरुके पास नित्य अपूर्व, अभ्यास करना । जिसके लिये शास्त्रमें कहा है कि, :