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श्राद्धविधि प्रकरण
कार्यवशात् सावस्ती नगरीमें आया हुवा था। वहां पर चार ज्ञानके धारक श्रीकेशी नामा गणधरकी देशना सुनकर वह श्रावक हुवा। फिर अपने नगरकी तरफ जाते हुए उसने श्रीकेशी गणधर को यह विज्ञप्ति की कि, स्वामिन् ! प्रदेशी राजा नास्तिक है इसलिये यदि आप वहां आकर उसे उपदेश देंगे तो बड़ा लाभ होगा। कितनेक दिन बाद विचरते हुए श्रीकेशी गणधर श्वेताम्बी नगरीके बाहिर एक बगीचेमें आकर ठहरे। यह जानकर चित्रसारथी दीवान प्रदेशी राजाको घूमने जानेके बहानेसे गुरुमहाराज के पास लाया । ____ जैन मुनियों को देखकर गर्वसे राजा उनके सामने आकर कहने लगा कि, हे महर्षि ! धर्म तो है ही नहीं, जीवोंका कहीं पता नहीं, परलोक की तो बात ही क्या, तब आप व्यर्थका यह कष्टानुष्ठान किस लिए करते हैं ? यदि धर्म हो, जीव हो, परलोक हो, तो मेरी दादी श्राविका थी और दादा नास्तिक था, उन्हें मैंने अन्त समय कहा था कि यदि तुम स्वर्गमें या नरकमें जाओ तो वहांसे आकर मुझे कह जाना कि, हम स्वर्गमें और नरकमें गये हैं इससे मैं भी वर्ग और नरकको मान्य करूंगा। उन्हें मैं बहुत ही प्रिय था तथापि वे मुझे कुछ भी कहने न आये। इससे मैं धारता हूं कि वर्ग और नरक कुछ भी नहीं हैं। मैंने एक चोरके राईके समान अनेकशः टुकड़े कर डाले परन्तु उसमें कहीं भी आत्मा नजर नहीं आया। एक चोरको जीते हुए तोलकर मार डाला फिर तोल देखा परन्तु दोनोंमें वजन एक समान ही हुवा। यदि आत्मा हो तो जीवित समय हुये तोलकी अपेक्षा मृतकको तोलनेसे वजन कमती क्यों न हुवा ? एक वोरको पकड़कर छिद्र हित कोठीमें डाल कर उस पर मजबूत ढक्कन देनेसे वह अन्दर ही मर गया। यदि आत्मा हो तो छिद्र हुए बिना किस तरह बाहर निकल सके ? उस मृतकके शरीरमें असंख्य कीड़े पड़े नज़र आये वे कहांसे अन्दर घुसे ? ऐसे अनेक प्रकार से मैंने परीक्षा कर देखी परन्तु कहीं भी आत्माको नज़रसे न देखा इसमें मैं सचमुच यही धारता हूं कि आत्मा, पुण्य, पाप, कुछ है ही नहीं।
गुरु बोले कि राजेन्द्र ! तुमने परीक्षा करने में सचमुच भूल की है । आत्मा अरूपी होनेसे वह इस तरह चर्मचक्षुसे प्रत्यक्ष नहीं दीख पड़ती है परन्तु कालान्तर से जानी जा सकती है। इस लिये आत्मा है एवं पुण्य और पाप भी है । आपकी दादी जो देवता हुई वह वहांके सुखमें लीन होगई, इससे वह तुम्हें पीछे समाचार कहने को न आसकी। तुम्हारा दादा जो मरके रकमें गया वहांके दुःखोंसे छूट नहीं सकता इसलिये तुझे पीछे कहनेको न आसका । परमाधामी की परवशता से वह तुम्हें कहने के लिये किस तरह आसके ? अरणीके काष्ठमें अग्नि है परन्तु वह आता जाता क्यों नहीं दीखता ? वैसे ही शरीरके चाहे जितने टुकड़े करो परन्तु उसमें आत्मा है तथापि अरूपी होनेसे वह किस तरह दीख सके ? एक भवनमें पवन भरे विना उसे तोलकर फिर पवन भरके तोलनेसे उसका वजन कुछ हलका भारी नहीं होसकता, वैसे ही जीवित और मृतकको तोलनेसे उसमें आत्माके अल. पीपनसे भारी हलकापन होता ही नहीं। यदि किसी कोठीमें किसी पुरुषको खड़ा रखकर उसका मुख बन्द कर दिया हो वह अन्दर रहा हुवा पुरुष यदि शंखादिक वाद्य बजावे तो उसका शब्द सुननेमें आ सकता है। वह शब्द छिन् विना किस तरह बाहर निकल सका ? वैसे ही कोठीमें डाले हुए पुरुषका आत्मा बाहर निकल जाय तो इसमें आश्चर्य हो क्या ? जैसे कोठीमेंसे शव्द बाहर निकल सका वैसे ही अन्दर भी प्रवेश कर सकता