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श्राद्धविधि प्रकरण तव तेणे वय तेणे । रुव तेणे अजे नहे॥
पायार भाव तेणे अ। कुबई देव किव्विसं ॥ तप की, व्रत की, रूप की, आचार भावकी, जो चोरी करता है वह प्राणी किल्विषिया देवका आयुष्य बांधता है । अर्थात् नीचे दरजेकी देवगति में जाता है।
“साधारणद्रव्य खर्चनेके विषयमें" यदि धर्ममें कुछ खर्चनेकी मर्जी हो तो विशेषता साधारण के नामसे ही खर्चना। फिर जैसे जैसे योग्य लगे वैसे उसमें खर्चना। साधारण द्रव्य खर्चनेके सात क्षेत्र हैं, उनमें से जो २ क्षेत्र खर्चने के योग्य मालूम दे उस क्षेत्रमें खर्च करना । जिसमें थोड़ा खर्चनेसे विशेष लाभ मालूम होता हो उसमें खर्चना, सिदाते क्षेत्रमें खर्चने से बहुत ही लाभ होता है क्योंकि सिदाता श्रावक हो और उसे आधार दिया हो तो वह आश्रय पाकर फिर जब श्रीमन्त हो तब वह उसी क्षेत्रमें विशेष आश्रय देनेवाला होता है, क्योंकि जिससे उपकार हुया हो उस उपकारी को फिर वह नहीं भूलता । अन्तमें वह उसे सहाय कारक बन सकता है इसलिए सिदाते क्षेत्रमें खर्चना महा लाभ दायक है। लौकिकमै भी कहा है, :
दरिद्रं भर राजेन्द्र । मासमृद्ध कदाचन ।
व्याधितस्यौषधं पथ्यं निरोगस्य किमौषधम् ॥ __ हे राजेन्द! दरिदको-निर्धनको दे, रिद्धिवन्त को कभी न देना। व्याधिवान को औषधी हितकारक होती है, परन्तु निरोगीको औषधका क्या प्रयोजन ?
इसी लिये प्रभावना संघ पहरावनो सनकितके मोदक आदि बांटना वगैरह निर्धन श्रावकको विशेष देना योग्य है । यदि ऐसा न करे तो धर्मके अनादर निन्दा प्रमुख दोषका सम्भव होता है । सगे सम्बधियोंकी अपेक्षा या धनाढ्योंकी अपेक्षा निर्धन श्रावकको अधिक देना योग्य ही है, तथापि यदि ऐसा न बन सके तो सबको समान देना, परन्तु निर्धनको कम न देना। सुना जाता है कि यमनापुर नगरमें ठक्कर जिनदास श्रावकने समकित के मोदककी प्रभावना करनेके प्रसंग पर सबके मोदकमें एक २ सुवर्ण महोर डाली थी और निर्धन श्रावकोंको देनेवाले मोदकोंमें से दो सुवर्ण महोरें डाली थीं।
"माता पिता आदिके पीछे करनेका पुण्य" विशेषतः पुत्र पौत्रादिको अपने माता पिता या चचा प्रमुखके लिए खर्च करनेकी मानता करना हो सो प्रथमसे ही करना योग्य है, क्योंकि क्या मालूम है कौन कब मरेगा, किसका पहले और किसका पीछे मृत्यु होगा। जिस जिसने जितना २ जिसके पीछे धर्मार्थ खर्च करना कबूल किया हो उसे वह सब कुछ जुदा ही खर्च करना चाहिए । जो अपने लिप स्वयं दानादिक किया जाता है उसमें उसे न गिनना, वैसा करनेसे व्यर्थ ही धर्मके स्थानमें दोषकी प्राप्ति होती है।