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श्राद्ध-विधि प्रकरण का उस नगरमें बड़े ही दयालु लोग रहते थे। हर एक तरह से समृद्धिशाली और सदाचारी मनुष्यों की बस्ती वाले उस नगर में देवकुमार के रूप समान और शत्रुओं को सन्तप्त करने में अग्नि के समान तथा राज्यलक्ष्मी, न्यापलक्ष्मी और धर्मलक्ष्मी एवं तीनों प्रकारकी लक्ष्मी जिस के घर पर स्पर्धा से परस्पर वृद्धि को प्राप्त होती है। इस प्रकार का रूपध्वज राजाका प्रतापी पुत्र मकरध्वज नाम का राजा राज्य करता था। एकबार क्रीड़ा रसमय वसंतऋतु में वह राजा अपनी रानियोंके साथ क्रीड़ा करने के लिये बाग में गया। जलक्रीड़ा, पुष्पक्रीड़ा प्रमुख विविध प्रकार की अन्तेउरियों सहित क्रीड़ाएं करने लगा। जैसे कि हस्तिनियों सहित कोई हाथी क्रीड़ा करता है। कोड़ा करते समय राजा ने उस बाग के अन्दर एक बड़े ही सुन्दर और सघन आम के वृक्ष को देखा। उस वृक्ष की शोभा राजा के चित्त को मोहित करती थी। कुछ देर तक उसकी ओर देखकर राजा उस वृक्षका इस प्रकार वर्णन करने लगा।
छाया कापि जगतप्रिया दलतति दत्तेऽतुलं मंगलम् ।
मंजर्युद्गम एष निस्तुलफले स्फाते निमित्तं परं ॥ :: आकाराश्च मनोहरास्तरुवरश्रेणिषु त्वन्मुख्यता ।
पृथ्व्यां कल्पतरो रसालफलदो मस्तवैव ध्रुवम् ॥ १॥ - हे मिष्ट फलके देनेवाले आम्रवृक्ष ! यह तेरी सुन्दर छाया तो कोई अलौकिक जगतप्रिय है । तेरी पत्रपंक्तियां तो अतुल मंगलकारक हैं । इन तेरी कोमल मारियों का उत्पन्न होना उत्कृष्ट बडे फलों की शोभा का ही कारण है, तेरा बाह्य दृश्य भी बड़ा ही मनोहर है, तमाम वृक्षों की पंक्ति में तेरी ही मुख्यता है, विशेष क्या वणन किया जाय, तू इस पृथ्वी पर कल्पवृक्ष है। ... इस प्रकार राजा आम के पेड़ की प्रशंसा कर के जैसे देवांगनाओं को साथ लेकर देवता लोग नंदनवन में कल्पवृक्षकी छाया का आश्रय लेते हैं वैसे ही आदर आनन्द सहित राजा अपनी पत्नियों को लेकर उस वृक्ष की शीतल छाया में आ बैठा मूर्तिवंत शोभासमूह के समान अपने स्वच्छ अन्तेउर वर्ग को देखकर गर्व में आकर गजा ख्याल करने लगा कि यह एक विधाता की बड़ी प्रसन्नता है कि जो तीन जगत से सार का उद्धार करके मुझे इस प्रकारका स्त्रीसमूह समर्पण किया है। जिस प्रकार गृहों में सर्व ताराऐं चन्द्रमाकी स्त्री रूप हैं वैसे ही वैसा खच्छ और सर्वोत्कृष्ट अन्तःपुर मेरे सिवा अन्य किसी भी राजाके यहां न होगा। वर्षाकालमें जैसे नदियों का पानी उमड़कर बाहर आता है वैसे ही उस राजाका हृदय भी मिथ्याभिमान से अत्यन्त बड़प्पन से उमड़ने लगा। इतनेही में समय के उचित बोलनेवाला मानों कोई पंडित ही न हो ऐसा एक तोता उस आमके वृक्षपर बैठा था इसप्रकार श्लोक बोलने लगा।
क्षुद्रस्यामि न कस्य स्याद्गश्चित्त प्रकल्पितः ।
शेते पातनयाव्योम्नः पादावुमिप्याटीट्टमः ॥ जिस प्रकार सोते समय टिटोडी नामक पक्षी अपने मनमें यह अभिमान करता है कि मेरे ऊंचे पैर रखने