________________
•mananda
श्राद्धविधि प्रकरण
१६१ लोगोंको प्रियकारी तारुण्यको प्राप्त हुवा । एक दिन किसी एक अनजान परदेशी मनुष्यने आकर राजाको धर्मदत्तकुमार के लिये सूर्यके अश्व समान एक अश्वरत्न भेट किया। उस वक्त धर्मदत्तकुमार उसे अपने समान अद्वितीय योग्य समझ कर उस पर चढ़नेके लिए उत्सुक हुवा, पिताने भी उसे इस विषयमें आज्ञा दी। घोड़े पर सवार होते ही वह तत्काल मानो अपनी गतिका अतिशय वेग दिखलाने के लिये ही एवं वह मानो इन्द्रका घोड़ा हो और अपने स्वामीसे मिलने ही न जाता हो इस प्रकार शीघ्र गतिसे वह अश्व आकाशमार्ग से एकदम उड़ा । (आकाशमार्ग से कहीं उड़ नहीं गया, वह स्वयं अपनी शीघ्र गतिसे ही चलता है परन्तु उसकी ऐसी शीघ्र गति है कि जिससे दूरसे देखनेवाले को यही मालूम होता है कि वह आकाशमें ऊंचे जा रहा है) एक क्षणमात्र में उसने ऐसी आकाशगति की कि, अदृश्य होकर वह एक हजार योजनकी विकठ और भयानक अटवीमें जा पहुंचा । उस अटवीमें बड़े २ सर्प फूकार कर रहे हैं, स्थान २ पर बन्दर बारम्बार हिन्कार शब्द कर रहे हैं, सूबर घुरघुराहट कर रहे हैं, चीते चीत्कार कर रहे हैं, चमरी गायोंके भांकार शब्द हो रहे हैं, गीदड़ फेत्कार कर रहे हैं । यद्यपि वहांका ऐसा भयंकर दिखाव है तथापि वह स्वभावसे ही धैर्यको धारन करनेवाला राजकुमार जरा भी भयके स्वाधीन न हुवा। क्योंकि जो धीर पुरुष होते हैं उन पर चाहे जैसा विकट संकट आ पड़े तो उसमें भय और चाहे जैसी संपदाकी वृद्धि हुई हो तथापि उसमें उन्मादको प्राप्त नहीं होते, इतना ही नहीं परन्तु शून्य वनमें उनका वित्त शून्य नहीं होता। उजड़ अटवीमें भी अपने आराम बगीचेके माफक वह राजकुमार निर्भय होकर वनमें फिरता है। उस जंगल में उसे किसी प्रकारका भय बगैरह मालूम नहीं दिया, परन्तु उस दिन उसे जिनपूजा करनेका योग न मिलनेसे वनमें नाना प्रकारके बनफल खाने योग्य तैयार होनेपर भी सर्व पापोंको क्षय करनेवाले चोविहार, उपवास करनेकी जरूर पडी। जहां बहुतसा शीतल जल भरा है और अनेक उत्तम जातिके सुखादु फल जगह २ देख पड़ते हैं एवं पेटमें भूखसे उत्पन्न हुई अत्यन्त हुई अत्यन्त पीड़ा सता रही है, ऐसी परिस्थिति में भी उस गुढ़प्रतिज्ञ कुमारका अपना नियम पालन करनेमें ऐसा निर्मल चित्त रहा कि जिसने अपने नियमके विरुद्ध मनसे भी किसी वस्तुको चाहना न की। इस तरह उसने तीन दिनतक उपवास किये, इससे अत्यन्त ताप और ऊष्ण पवनसे जैसे मालतीका फूल कुमला जानेसे निर्माल्य देख पड़ता है वैसे ही राजकुमार के शरीरका बाहरी दिखाव बिलकुल बदल गया, परन्तु उसका मन जरा भी न कुमलाया। उसकी दृढ़ताके कारण प्रसन्न होकर अकस्मात् उसके सामने एक देवता प्रगट हुवा। प्रत्यक्ष जाज्वल्यमान दिखावसे प्रकट होकर प्रशंसा करते हुए बोला-"धन्य धन्य ! हे धैयवन्त ! तुझे धन्य है। ऐसे दुःसह कष्टके समय भी ऐसा दुःसाध्य धैर्य धारन कर अपने जीवितकी भी अपेक्षा छोड़कर अपने धारण किये गुढ़ नियमको पालन करता है। सचमुच योग्य ही है कि, जो इन्द्र महाराज ने सब देवताओं के समक्ष अपनी सभामें तेरी ऐसी अत्यन्त प्रशंसा करी कि, राज्यन्धर राजाका धर्मदत्त कुमार वर्तमान कालमें अपने लिये हुये नियमको इतनी दृढ़तासे पालता है कि, यदि कोई देवता आकर उसे उसके सत्वसे चलायमान करना चाहे तथापि जबतक प्राणान्त उपसर्ग हो तबतक वह अपने नियमसे भ्रष्ट नहीं हो सकता । इन्द्र महाराज ने आपकी ऐसी प्रशंसा की वह सुनकर मैं सहन न कर सका; इसीसे मैं तेरी परीक्षा करनेके लिये घोड़े पर
२१