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श्राद्धविधि प्रकरण
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उसका ऐसा जन्म महोत्सव किया कि जैसा अन्य किसी पुत्रके जन्मसमय न किया था। यह पुत्र धमके प्रभावसे प्राप्त हुवा होनेसे सगे सम्बधियोंने मिल कर उसका धर्मदत्त यह सार्थक नाम रक्खा। कितनेक दिन बीतने पर एक दिन अत्यन्त आनन्द सहि नवीन कराये हुवे मन्दिरमें उस पुत्ररत्नको दर्शन कराने के लिये समहोत्सव जाकर मानो प्रभुके सन्मुख भेंट ही न करती हो वैसे उसे नये २ प्रकारसे प्रणाम कराकर रानी अपनी सखियों बोलने लगी कि, हे सखी! सचमुच ही आश्चर्यकारी और महाभाग्यशाली यह कोई मुझे उस हंस काही उकार हुवा है। उस हंसके बचनके आराधन से जैसे किसी निर्धन पुरुषको निधान मिलता है वैसे ही दुष्प्राप्य और उत्कृष्ट इस जिनधर्मप्रणीत धर्मरत्नकी और इस पुत्ररत्नकी मुझे प्राप्ति हुई है। इस प्रकार रानी जब हर्षित हो पूर्वोक बबन बोल रही थी तब तुरन्त ही अकस्मात् जैसे कोई रोगी पुरुष एकदम अवाक हो जाता है वैसे ही वह पुत्र मूर्छा खाकर अवाचक होगया । उसके दुःखसे रानी भी तत्काल ही मूर्च्छित हो गई । यह दिखाव देखते ही अत्यन्त खेद सहित पासमें खड़े हुये तमाम दास दासी आदि सज्जनवर्ग हा, हा ! हाय हाय ! यह क्या हुवा ! क्या यह भूतदोष है या प्रेतदोष है ? या किसीकी नजर लगी! ऐसे पुकार करने लगे । यह समाचार मिलते हो तत्काल राजा दीवान आदि राजवर्गीय लोक भी वहां पर आ पहुंचे, और शीघ्रतासे बावना, चन्दनादिक का शीतोपचार करनेसे उस बालकको सचेतन किया। एवं रानीको भी चैतन्यता आई । तदनन्तर सब लोग हर्षित होकर महोत्सव पूर्वक बालकको राजभुवन में ले गये। अब वह बालक सारा दिन पूर्ववत् खेलना, स्तन्यपान करना वगैरह करता हुवा बिचरने लगा। परन्तु जब दूसरा दिन हुवा तब उसने सुबह से ही पोरशी प्रत्याख्यान करनेवाले के समान स्तन्यपान तक भी नहीं किया । शरीरले तन्दुरुस्त होने पर भी स्तन्यपान न करते देख लोगोंने बहुतसे उपचार किये परन्तु वह बलात्कार से भी अपने मुहमें कुछ नहीं डालने देता। इससे राजा रानी और राजवर्गीय लोक अत्यन्त दुःखित होने लगे । मध्यान्ह होने के समय उन लोगोंके पुण्योदय से आकर्षित अकस्मात् एक मुनिराज वहां पर आकाश मार्ग से आ पहुंचे।
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प्रथम उस राजकुमारने मुनिको देख बन्दन किया, फिर राजा रानी आदि सबको नमस्कार किया । मुमिराजको अत्यन्त सत्कार पूर्वक एक उच्चासन पर बैठाकर राजा आदि पूछने लगे कि, “हे स्वामिन् जिसके दुःखसे हम आज सब दुःखित हो रहे हैं ऐसा यह कुमार आज स्तन्यपान क्यों नहीं करता ?” मुनिराज वोले - "इसमें और कुछ दोष नहीं है परन्तु तुम इसे अभी जिनेश्वर देवके दर्शन करा लाओ फिर तत्काल ही यह बालक अपने आप ही स्तन्यपान करनेकी संज्ञा करेगा। यह बचन सुनकर तत्काल ही उस बालकको उसी मन्दिर में दर्शन करा लाये, दर्शन करके राजभुवन में आते ही वह बालक अपने आप ही स्तन्यपान करने लगा, यह देख सब लोगोंको आश्चर्य हुवा । उसले राजाने हाथ जोड़कर पूछा कि हे मुनिश्रेष्ठ ! इस आश्चर्यका कारण क्या है ? मुनिराजने कहा कि, इसका पूर्वभव सुननेसे सब मालूम हो जायगा ।
दुष्ट पुरुषोंसे रहित और सज्जन पुरुषोंसे भरी हुई एक कापुरिका नामा नगरी थी। उसमें दीन, हीन, और दुःखी लोगों पर दयावंत एवं शत्रुओं पर निर्दयी ऐसा कृपनामक राजा राज्य करता था । इन्द्रके प्रधान