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Arranka
श्राद्धविधि प्रकरण . “दतवन करनेके निषेधके संवन्धौ” कासवासज्वराजीण, शोकतृष्णास्यपाकयुक्,
तन्न कुर्याच्छिरोनेत्र, त्यत्कर्णामयवानपि ॥ १२॥ खांसीका रोगी, श्वासरोगी, अजीर्णरोगी, शोकरोगी, तृष्णारोगी, मुखपाकरोगी, मस्तकरोगो, नेत्ररोगी, हृदयरोगी, कर्णरोगी, इतने रोगवालेको दतवन करना निषेध है। .
'बाल संवारनेके विषयमें" केशमसाधनं नित्यं, कारयेदथ निश्चला;
कराभ्यां युगपत्कुर्याद, स्वोत्तमांगे स्वयंन तत् ॥ १३ ॥ शिरके बाल नित्य स्थिर हो कर दो हाथसे अन्य किसोके पास साफ करना परन्तु अपने हाथसे न संवारना। (कंगोसे या कंघेसे किंवा हायसे दूसरेके पास बाल ठोक कराना)
"दर्पण देखनमें आगमचेति" तिलक करनेके लिए या मंगलकी निमित्त रोज दर्पण देखना चाहिये, परंतु दर्पणमें जिस दिन अपना मस्तक रहित धड़ देखपड़े उस दिनसे पंद्रहवें दिन अपनी मृत्यु समझना।
जिस दिन उपवास, ऑविल, या एकासन आदिका प्रत्याख्यान किया हुवा हो उस दिन दतवन या मुखशुद्धि किये विना भी शुद्ध ही समझना। क्योंकि, तप यह एक महा फलकारी शुद्धि है। लौकिकमें भी यही व्यवहार है कि, उपवास आदि तपमें दतवन किये विना ही देवपूजन वगैरह करना । लौकिक शास्त्र में भी उपवास आदिके दिन दतवने का निषेध किया है। विष्णुभक्ति चन्द्रोदयमें कहा है कि
प्रतिपदर्शषष्ठी, मध्यांते नवमीतिथौ; संक्रांतिदिवसे प्राप्त , न कुर्यादन्तधावनं ॥१॥ उपवासे तथा श्राद्ध न कार्यादन्तधावन, दन्तानां काष्ठसंयोगे, हन्ति ससकुलानि वै ॥२॥ ब्रह्मचर्यमहिंसा च' सत्यमामियजन। व्रते चैतानि चवारि, चरितव्यानि नित्यसः ॥३॥ असकृत जलपानानु, तांबुलस्य च भक्षणाद।
उपवासः प्रदुध्येत, दिवास्वापाच मेथुनाव ॥४॥ प्रतिपदी, अमावस्या, छंट, नवमी और संक्रांतिके दिन दतवन न करनी । उपवासमें या श्राद्धमें दतवन न करना, क्योंकि, दातको दतवनका संयोग सात कुलको हणता है। ( सात अक्तार, दुर्गतिमें जायें) ब्रह्मचर्य, अहिंसा, सत्य, मांसत्याग, ये चार हर एक व्रतमें अवश्य पालन करना। बारबार पानी पीनेसे,