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________________ भवमटन्द्रियो अधिकार]. शुभवृत्तिशिक्षोपदेशः [ ६३१ इस श्लोकमें शुभप्रवृत्ति किस प्रकार रखी जा सकती है इसक मार्ग दिखाने निमित्त नाममात्र निर्देश किया गया है। यह सम्पूर्ण श्लोक मुख्यतया मुनिमहाराजको उद्देश कर लिखा गया है। इस सम्पूर्ण अधिकारमें यह ही रीति ग्रहण की गई है । चौदह अधिकारोंको पदलेनेवाला इस अधिकारको आसान से ही समझ सकता है अतएव मूल ग्रन्थकर्त्ताने इनपर विशेष विवेचन करना योग्य नहीं समझा है । स्वाध्याय-आगमार्थ-भिक्षा श्रादि. खाध्याययोगेषु दधस्त्र यत्नं, मध्यस्थवृत्त्यानुसरागमार्थीन् । भगारवो भैक्षमटाविषादी, _हेतौ विशुद्धे वशितेन्द्रियोघः ॥ ४ ॥ • “सझाय ध्यानमें यत्न कर, मध्यस्थ बुद्धिसे आगमके अर्थका अनुसरण कर, अहंकार त्याग कर, मिक्षा निमित्त फिर, इसीप्रकार इन्द्रियों के समूहको वशमें करके शुद्धहेतुमें विखवाद रहित बन ।" उपजाति. विवेचन-ऊपरके श्लोकमें जैसे नामनिर्देश किया गया है उसीप्रकार यहां भी साधुको उद्देश कर शुभ प्रवृत्ति निमित्त विशेष कार्योंके नाममात्र बतलाये गये हैं। (१) हे यति ! तू स्वाध्यायमें काल निर्गमन कर । तुझे व्यर्थ बातें करना या पंचायत करना शोभा नहीं देता है, क्यों कि इससे भाषासमिति और जीवरक्षाका अभाव होनेसे तुझे सावध उपदेश और सावध पितवनका ख्याल भी नहीं आ सकता है। अभ्याससे ज्ञानदृष्टि जागृत होती है और परोपकार करनेका प्रबल साधन मिलता है । भपितु तुझे योग धारण करना चाहिये। से आगमन
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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