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________________ अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोधसंवरोपदेशः [६११ बस्तिसंयम. बस्तिसंयममात्रेण, ब्रह्मके के के न बिभ्रते । मनःसंयमतो धेहि, धीर! चेत्तत्फलार्थ्यसि॥१७॥ " मूत्राशयके संयममात्रसे कोन ब्रह्मचर्य धारण नहीं करता है ? हे धीर ! यदि तुझे ब्रह्मचर्यके फलकी अभिलाषा हो तो मनका संयम करके ब्रह्मचर्यका पालन कर ।" अनुष्टुप्. विवेचन—स्पर्शनेन्द्रियके विषयमें स्त्रीसंयोगका विषय महा गृद्धिका कारण है । इसलिये इसका विशेष मनन करने के लिये इसकी व्याख्या एक अलग श्लोकमें कीगइ है । इससे यह न समझे कि यह पाचों इन्द्रियोंसे भिन्न है, यह तो स्पर्शनेन्द्रियका एक विभाग है। यह इन्द्रिय कितनी भयंकर है कि शास्त्रकार कहते हैं कि अन्य इन्द्रियोंके विषयोंको भोगते हुए तो केवलज्ञान होना संभव है । सुगन्ध लेते, सुस्वर सुनते, रूप देखते और उत्तम पदार्थ खाते समय तो यदि आत्मस्वरूप विचारे और पौद्गलिक भावका त्याग विचारे तो केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु स्त्रीसंयोग करनेपर ऐसा कदापि नहीं हो सकता है। एकान्त दुर्ध्यान हो, सात धातुकी एकत्रता हो और महाक्लिष्ट अध्यवसाय हो तब ही स्त्रीसंयोग हो सकता है। इसप्रकार एकान्त अधःपात करनेवाली स्पर्शनेन्द्रिय कुछ अजय नहीं है, परन्तु गुह्येन्द्रियका बलात्कारद्वारा संयम करना पडे तो उससे कुछ लाभ नहीं होता है । असन्नी पंचेन्द्रिय तक तो नपुंसकवेद हैं परन्तु वह पुरुषवेदसे अधिक कठिन है, वे तथा नारकीके जीव और कृत्रिम नपुंसक बैल तथा अश्व यदि ब्रह्मचर्यका पालन करे तो उसमें कुछ लाभ नहीं है, परन्तु सन्मुख रंभा तथा
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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