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________________ अधिकार] मिथ्यात्वादिनिरोधः [६०३ हुए होते हैं उनके हृदय में फिरसे प्रेमके अंकुर कभी नहीं आने पाते हैं। अनुभवी जानते हैं कि वचनवाण हृदयमें शल्यके समान काम करता है और एकबार लगने पर वह फिर कभी नहीं भुले आ सकते हैं । अतएव व्यर्थ बोलने की आदतको बन्द कर देना चाहिये । कितने ही पुरुष अपनी विद्वत्ता बतानेके लिये अकारण भी अप्रस्तुत बोलते रहते हैं जिससे वे अपनी लघुताका परिचय देते हैं । विशेषतया न तो व्यर्थ बोलना चाहिये और न कडुवा । तीर्थकर महाराज और वचनगुप्तिकी प्रादेयता. अत एव जिना दीक्षाकालादाकेवलोद्भवम् । अवद्यादिभिया ब्रयुर्ज्ञानत्रयभृतोऽपि न ॥९॥ __ " इसलिये यद्यपि तीर्थकर महाराजको तीनो ज्ञान होते हैं फिर भी दीक्षाकालसे लगाकर केवलज्ञान प्राप्त होने तक पापके भयसे वे कुछ भी नहीं बोलते हैं।" अनुष्टुप्. .. विवेचन-सावद्य बोलनेसे अनिष्ट फल होता है इसलिये तीर्थकर महाराज भी छद्मस्थ अवस्थामें मौन धारण करते हैं । बड़े ज्ञानीको भी इतना भय रहता है इस पर विचार करनेकी आवश्यकता है । यहां तो जापानमें आज यह हुआ और वीसु. वियस ( Vesusvius ) ज्वालामुखी पहाड़ फटा, पार्लियामेन्ट ( Parliament ) में एसा वादविवाद हुआ और राज्यमें ऐसी खटपट हो रही है, ऐसी ऐसी बाते करके व्यर्थ समयको बरवाद किया जाता है। वर्तमान इतिहासको जानना एक अलग बात है, परन्तु फिर उसके सम्बन्धी बाते कर विचार प्रगट कर व्यर्थ कर्मबन्ध क्यों करना ? शास्त्रकार एक व्यवहारिक वचन कहते है कि " बहुत बोलनेवाला बकवादी " इसमें सब बातोंका सार पा जाता है।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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