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अधिकार ) मिथ्यात्वादिनिरोधः [६०१ द्वारा दी हुई साची-यह सब बात कह सुनाई । फिर कहा कि 'वेरे पास न्याय कराने आवे उस समय हे भाई ! पर्वतकी रक्षा करनेके लिये 'मज ' अर्थात् बकरा ऐसा कहना । बड़े पुरुष प्राणसे भी दूसरोंपर उपकार करते हैं तो फिर वाणीसे करे इसमें तो विशेषता ही क्या है ?" वसुराजा बोला, "हे माता ! मिथ्या वचन मैं क्यों कर बोलूं १ प्राणका नाश होने पर भी सत्यव्रती पुरुषको कभी भी असत्य नहीं बोलना चाहिये तो फिर गुरुकी बाणीको अन्यथा करने के लिये झुठी साक्षी देना तो बहुत ही खराब है।" " भाई तेरे तो गुरुपुत्रसे भी सत्यव्रतका आग्रह अधिक है तो ठीक है ! मेरा भाग्य ! " इतना कहकर गुरुपत्नीने दयाई मुख किया, तब राजा दयासे भर आया। उसने उसके वचनको अंगीकार किया । गुरुपत्नी प्रसन्न होकर अपने घर लौटी। ___अब नारद और पर्वत राजसभामें आये । सभामें अनेक सभ्य, विद्वान् और माध्यस्थ्य वृत्तिवाले सज्जन बिराजमान थे। राजा स्फटिककी वेदिके प्रभावसे श्रद्धर दिखनेवाले सिंहासनपर आरूढ था । राजाने गुरुपुत्र और सहपाठी नारदका आदरसत्कार किया। नारद और पर्वतने अपना पक्ष स्थापित किया, और राजाका परिणामप्रमाण ( Decision ) अंगीकार किया; सत्यकी महिमा बतलाइ और राजाको सत्य भाषण करनेको कहा । यह सब बात कहनेपर भी मानो उसने सुना ही न हो, अपने सत्यवादीपनकी प्रसिद्धि के कारण अपने सिरपर आये हुये महान् कर्तव्यका ख्याल मानो क्षणभरके लिये दूर चला गया हो इस प्रकार गुरुपत्नी के वचनोंको मान्यकर वसु राजाने न्याय किया कि " गुरुने 'अज' शब्दका अर्थ बकरा सिखलाया था।" इन