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अधिकार ] मिथ्यात्वादिनिरोधः [५४९ को उलाहना देना चाहिये क्योंकि इसने दीक्षा ली उस समय इसका पुत्र बहुत बालवयका था, बलरहित था, परन्तु इस बातका विचार किये बिना ही उसको राज्यभार दे स्वयंने व्रत ने लिया इससे कृतकृत्य हो गया । अब इसके सगेस्नेही बेचारे बालकको हैरान करते हैं, सम्पूर्ण शहरमें उपद्रव करते हैं और लोगोंमें प्रश्रद्धा हो रही है इसलिये इस मुनिके तो सामने भी न देखना चाहिये।"ऐसा वार्तालाप करते करते वे तो कर्णपथसे दूर चले गये, परन्तु उनकी बात सुन कर राजर्षि ध्यानभ्रष्ट हो गये । वह क्रोधसे लाल लाल हो गये और संसारसे एक बार निवृत्त हुमा मन पिछा संसारमें भटकने लगा, मार्तध्यान गायब हो गया और विचार हुमा कि-महो! अहो ! मेरे जीवते ही मेरे पुत्रकी ऐसी दशा क्यों कर हो सकती है ? ऐसे विचारसे मनमें उसके विरोधियोंके साथ युद्ध करना प्रारम्भ किया । . इसप्रकार मुनिमहाराजके मनमें प्रचण्ड युद्ध चलने लगा उस समय वीरप्रभुका परमभक्त श्रीश्रेणिक नृपति उनको बन्दना करने चला । मार्गमें मुनिको देख कर वन्दना की, परन्तु मुनिने उसकी मोर गाँख उठा कर भी नहीं देखा । श्रेणिकने विचार किया कि यह मुनि इस समय शुक्लध्यानारूढ होंगे । श्रेणिक प्रभुके निकट गया, सविनय नमस्कार किया, बन्दनाकी आशा सुनी । तत्पश्चात् पूछा " हे भगवन् ! जिस स्थितिमें मैंने प्रसन्नचन्द्र राजर्षिको वन्दना की यदि उसी स्थितिमें वह मृत्युको प्राप्त हो तो उन्हें कौनसी गति प्राप्त होवे ?" भगवानने उत्तर दिया" सातवीं नरकमें जावे । " श्रेणिकराजा यह उत्तर सुन कर अत्यन्त आश्चर्य से चकित हुमा ।
भव प्रसन्नचन्द्र राजाका क्या हाल हुआ इसे देखिये । वे वो मनमें बड़ा युद्ध मचाने लगे । बड़े समरांगण में सर्व शत्रुओंको