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________________ अथ चतुर्दशो मिथ्यात्वादिनिरोधाधिकारः रहवे अधिकारका मुख्य उद्देश साधुको उपदेश देनेका था। ये साधु प्रायः देशविरति श्रावकवर्ग: | मेंसे उत्पन्न होते हैं उनको मन-वचन-कायाके । योगोंपर अंकुश, इन्द्रियोंका दमन और मिथ्यात्व आदि बंधके हेतुओंका त्याग करनेको उपदेश किया गया है । अन्यकर्ता इसलिये लिखते हैं कि ' अथ सामान्यतो यतीन् विशेषतो धर्मगृहिणश्चाश्रित्य मिथ्यात्वादि-संवरोपदेशः' इसलिये यह उपदेश यतिके लिये सामान्य है और देशविरति गृहस्थको विशेषतया उद्देश कर लिखा गया है। इसके अधिकारीके योग्य विवेचन भी नीचे जान पड़ेगा। बंध हेतुका संवर कर. मिथ्यात्वयोगाविरतिप्रमादान्, आत्मन् ! सदा संवृणु सौख्यमिच्छन् । असंवृता यद्भवतापमेते, सुसंवृता मुक्तिरमां च दद्युः ॥ १॥ " हे चेतन ! यदि तुझे सुखकी अभिलाषा हो तो मिथ्यात्व, योग, अविरति और प्रमादका संवर कर । यदि इनका संवर न किया जाय तो ये संसारका ताप देते हैं, परन्तु जो इनका उत्तम प्रकारसे संवर किया हो तो ये मोक्षलक्ष्मी देते हैं।" • उपजाति.
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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