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________________ अधिकार] यतिशिक्षा [५३ है और उनका यदि प्रचार होने देगा तो फिर अनन्तकाल सक तुझे दुःख भोगने पड़ेंगे । मुख्य बात यह है कि विषयप्रमा और तजन्य क्रिया भवभ्रमणका ही हेतु है। सुज्ञ जीव चाहे जैसा जीवन चलावे तो फिर यदि वह वास्तविकतया अनन्त दुःखसागरमें डूबता जाय तो उसमें भी कोइ विशेषता नहीं है । बोधिबीजाप्रप्ति-आत्महित साधन. कथमपि समवाप्य बोधिरत्नं, युगसमिलादिनिदर्शनाद्दरापम् । कुरु कुरु रिपुवश्यतामगच्छन्, किमपि हितं लभसे यतोऽर्थितं शम्?॥५२॥ " युगसमिला आदि सुप्रसिद्ध दृष्टान्तोंद्वारा महान् कठिनतासे प्राप्त होनेवाले बोधिरत्न( समकित )को प्राप्त कर लेनेपर शत्रुनोंके वशीभूत न होकर कुछ आत्महित कर, कि जिससे मनोवाञ्छित सुखकी प्राप्ति हो।" पुष्पिताप्रा. विवेचन-समकित प्राप्त होनेके शास्त्रकार ग्यारह कारण बतलाते हैं अनुकम्पा, अकाम निर्जरा, अज्ञान तप, दान, विनय, अभ्यास, संयोगविभाग, दुःख, उत्सव, ऋद्धि और सत्कार । इस समकितकी प्राप्ति बहुत दुर्लभ है। मनुष्यजन्मकी दुर्लभता बतानेके लिये शास्त्रमें जो दश दृष्टांत बताये गये हैं बहुत प्रसिद्ध हैं । जिनका सम्पूर्ण विवेचन कथासहित इस प्रन्यमें पहिले हो चुका है। उन दृष्टान्तोंमेंसे युगसमिलाके दृष्टान्तमें १न, न, र, य ( १-३ ) न, ज, ज. र, गु ( २०-४ ) प्रत्येक चरणमें अनुक्रमसे १२-१२, १२-१३ अक्षर हैं । ' अपरवक्त्र ' के ऊपर एक गुरु अक्षर रखनेसे “पुष्पिताना' होता है । यह विषम वृत्त है । ' गान्तं पुष्पिताग्रा ' छान्दोनुशासन ' अयुजि न युगरफेतो यकारो, युजिचतजौ जरगाश्च पुष्पिताग्रा ' वृतत्नाकर ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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