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अधिकार ] - यतिशिक्षा
[ ५४३ मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ्य ये चार भावना भी विशेषतया निरन्तर रखना चाहिये । इनका स्वरूप प्रथम अधिकारमें स्पष्ट कर दिया गया है।
हे साधु ! तुझे चरणसित्तरी और करणसित्तरीका बहुत उत्तम प्रकारसे पालन करना चाहिये । इनमें से प्रत्येकके सत्तर सत्तर भेद लिखते हुए एक बहुत बड़ा लेख हो जाता है, फिर भी संक्षेपसे इन सत्तर भेदोंका स्वरूप यहां बतलाया जाता है, क्योंकि ये साधुजीवनके लिये बहुत उपयोगी है। प्रथम चरणसित्तरीके ७० भेद बतलाये जाते हैं। वयसमणधम्मसंजम, वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तव, कोहनिग्गहाई चरणमेयं ॥ ५ महावत--ये प्रसिद्ध ही हैं। १० यतिधर्म-ये बहुत उपयोगी है । ये यति जीवन ही हैं।
१ क्षमा धारण करना। २ अहंकारका त्याग करना । ३ सरलता रखना। ४ लोभका त्याग करना। ५ तपस्या करना। ६ श्राश्रवकी विरति करना । ७ सत्य धारण करना ।
संयममें निरतिचारपन रखना। ९ धनममत्वत्याग-धनका त्याग करना । - १० अखण्ड ब्रह्मवर्य पालन करना ।
१ विशेष विस्तारसे इसके स्वरूपको जाननेके जिज्ञासुओंको 'प्रवचनसारोद्धार प्रन्थ ' प्रकरण रत्नाकर तीसरा भाग पृष्ठ १६० से २२८ तक पढ़ना चाहिये ।