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अधिकार ]
यतिशिक्षा
[ ५४१ सकते हैं उनके लिये यत्न कर, यह यम ( काल ) तुझे हड़प कर जानेको शीघ्रता करता है तो फिर प्रमादका आश्रय लेते हुए तू क्यों संसारभ्रमणसे नहीं डरता है ?" वंशस्थविल. . .विवेचन- १-इस संसार में कोइ वस्तु नित्य नहीं है, सर्व नाशवंत हैं, एक मात्र आत्मा नित्य है ।
२-इस जीवको जिनवचन सिवाय अन्य किसीका प्राधार नहीं है । यदि चाहे तो अपनी सत्ता सिद्ध करके अपने पैरोंके बलपर खड़ा हो सकता है।
३-इस संसारमें भ्रमण करता हुआ जीव कई बार राजा और रंक होता है, भिनु तथा इन्द्र होता है, रोगी और निरोगी होता है, इसीप्रकार सम्बन्धमें भी पुत्र हो वह पिता होता है, स्त्री हो वह माता होती है, माता हो वह स्त्री होती है-ऐसी अनेक प्रकारकी विचित्रता होती ही रहती है।
___४-यह जीव अकेला आया है, अकेला ही जायगा। इसका कोई नहीं है, यह किसीका नहीं है और इसके साथ कुछ भी नहीं जायगा।
५-हे आत्मा ! जिसको तू तेरा समझता है, तेरे समझता है, वह न तो तेरा है न तेरे हैं । पौद्गलिक वस्तुयें पराई है, विनाशी है, त्याज्य है, इसीप्रकार सगे-स्नेही, स्त्री, पुत्रादि भी तेरे नहीं है, तू सबसे भिन्न है।।
६-शरीरपर तुझे अत्यन्त मोह है, परन्तु वह अशुचिमय है, दुर्गध वस्तुओंसे वह भरा हुआ है, उसमें एक भी पदार्थ ऐसा नहीं है जिससे प्रीति की जा सके । मांस, रुधिर, चरबी, हड्डी और चमड़ी इन सब अपवित्र पदार्थोसे वह बना हुआ है अतएव शरीरका ममत्व छोड़ दे। . मिथ्यात्व, अपिरति, कषाय और मन, वचन,