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अधिकार ] यतिशिक्षा
[ ५३३ चिरकाल तक रहनेपर भी विषय आखिरकार तो जाने ही वाले हैं। मनुष्य यदि उनको अपने आप चाहे न छोड़े तो भी यह तो निर्विवाद सत्य है कि उनका वियोग होना तो अवश्यंभावी है । यदि वे अपने भाप जायेगें तो मनपर दुःखका गहग प्रभाव डाल जायेगें, जबकि यदि हम उनका अपने आप परित्याग करदें तो वे अत्यन्त शांति पहुंचाते हैं, यह बात अनुभवसिद्ध है । बुढ़ापेमें इन्द्रियों के विषय शरीरकी निर्बलताके कारण छोड़ने पड़ते हैं । तब फिर पूर्वकी इच्छाओंके कारण बालचेष्टायें करनी पड़ती है । दृष्टान्तरूप सेव आदिको पीस कर. खाना पड़ता है
और पानको सरोतेसे काटकर खाना पड़ता हैं। बड़ी उम्रतक विषयोंको परित्याग. करनेकी टेव न पड़नेसे ऐसी हास्यास्पद स्थिति हो जाती हैं। अतएव यदि उम्र प्राप्त होनेसे पहिले ही स्वयमेव विषयोंका परित्याग करदिया जाय तो बहुत आनन्द प्राप्त होता है।
. इस मनुष्य भवमें दश, विस, पच्चीस या पचास वर्ष संयम पालन कर सवशपनसे जो आत्मविभूति प्राप्त होती है उसका फल जब चिरकाल तकका स्वर्गसुख, वा अनन्तकाल तकका मोक्षसुख होता है तब अनुभवमें आता है । और यदि यहांपर जो गफलत की जाय तो परभवमें परवशपनसे अत्यन्त दुःख सहन करने पड़ते हैं, और लाभ कुछ भी नहीं होता है। इसप्रकार इस भवमें परीषह सहन करनेसे जब अनेक प्रकारके लाभ होते हैं, तब उनको परभव के लिये स्थगित करदेनेसे महान हानिका होना प्रत्यक्ष ही है। इस बातका विचार कर, यहां शुद्ध व्यवहार रखकर, तप, जप, ध्यान, संयम, इन्द्रियदमन भादिके विषयमें वारम्वार वृद्धि करना सर्वथा योग्य है ।
•परीषह सहन करनेके शुभ फल.