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अधिकार ] यतिशिक्षा
[५१७ परिग्रह क्यों करता है ? विषको नामान्तर करनेपर भी वह मारनेवाला है। "
उपजाति विवेचन-धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद आदि सब सांसारिक परिग्रहोंका हे मुनि ! तूने स्याग कर दिया है। तूने महान् कष्ट सहन कर इन पैसे और घर महल आदि परके मोहका परित्याग कर दिया है । इस रीतिसे तू संसारसमुद्र तैर जाने की श्रेणीमें आया है, तो फिर अब तेरे पास जो शय्या, पुस्तक या अन्य उपकरण है उनका व्यर्थ परिग्रह क्यों करता है ? इस वस्तुके ममत्वरूप परिग्रहका भी त्याग कर दे।
इस प्रसंगपर परिग्रह क्या है और परिग्रह किसको कहते है ? इनका जानलेना अत्यावश्यक है । उपकरण छोड़ देने या पुस्तकोंके त्याग करने का यहां प्रयोजन नही है। परिग्रहका अर्थ ममत्व है ' मुच्छा परिग्गहो वुत्तो' एक वस्तुपर मेरेपनका विचार हो-ममत्व हो-उसके छोड़ने में खेद हो-इसे परिग्रह कहते हैं । इसप्रकारका ममत्व किसी वस्तुपर न रखना चाहिये । धर्मके उपकरणके नामपर भी सांसारिक राग साधुमें किसी समय हो जाता है । इसे मनुष्य स्वभावकी कमजोरी कहिये या पंचमकालका प्रभाव कहिये या विभावदशाको स्वभावदशामें पलटनेकी स्थितिका आविर्भाव कहो, चाहे जो क्यों न कहो परन्तु यह स्थूल परिग्रह भी सर्वथा त्याज्य है । जो वस्तु धार्मिक क्रियामें साधनरूप है वे उतने ही अंशमें रखने योग्य है; परन्तु उनपर मेरेपनकी बुद्धि या इसके अधिकारी नियत करनेकी निजकी सत्ता या इसी प्रकारकी कोई दूसरी खटपट सर्वथा त्याज्य है । इस विषयमें यदि किसी प्रकारका अपवाद हो तो वह गुणनिष्पन्न गीतार्थ अधिपति के लिये है, जिसके विषयमें यहां कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है। इन छ श्लोकोंमें इस