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________________ अधिकार ] यतिशिक्षा [५१३ उत्पन्न करने चाहिये । इससे ज्ञात होता है कि इस जीवन की सफलता के लिये गुण प्राप्त करनेकी विशेष आवश्यकता है । कितने ही जीव भोले जीवोंसे स्तुति किये जाने पर प्रसन्न होते हैं " महाराज ! आप तो शान्त रसके समुद्र हैं और कृपा • सिन्धु हैं " आदि आदि श्रवण करके सोचते हैं कि मैं भी कुछ हूँ; परन्तु ऐसा विचार करनेसे वह गुणवान् नहीं हो सकता है, कि जिसमें गुण हों, अतः गुण प्राप्त करनेका प्रयास कर । वन्दन - नमस्कार मीठे लगते हैं, अच्छे लगते हैं; परन्तु वे परि णाममें खराब हैं, फँसानेवाले हैं और तेरे जीवनको निष्फल बनानेवाले हैं । क्रोधपर जय, ब्रह्मचर्य, मानमायाका त्याग, निस्पृहता, न्यायवृत्ति और शुद्ध व्यवहार आदि गुणों को एकत्र कर और फिर इनकी सुगन्धिका चारों ओर प्रसार कर । गुणयुक्त व्यवहार होने पर तेरे मनमें जो अपूर्व आनंद होगा वह अवर्णित है । इस जन्मको सार्थक बनाने का यह एक मुख्य तथा कभी भी निष्फल न होनेवाला मार्ग है | भवान्तरका विचार - लोकरंजन पर प्रभाव. अध्येषि शास्त्रं सदसद्विचित्रालापादिभिस्ताम्यसि वा समायैः । येषां जानानामिह रञ्जनाय, 1 भवान्तरे ते क्क सुने ! क्व च त्वम् ॥२३॥ " जिन मनुष्यों का मनरंजन करनेके लिये तू अच्छे और बुरे अनेक प्रकारके शास्त्रोंका स्वाध्याय करता है और मायापूर्वक विचित्र प्रकारके भाषणोंसे ( कंठशोषादि) खेद सहन करता है वे भवान्तरमें कहा जायेंगें और तू कहां जायगा ? ” उपजाति. ६५ "
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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