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अधिकार ] यतिशिक्षा
[५०५ है। विषयकवायके त्यागकी प्रतिज्ञा करके भी कितने ही भोले मुनि थोडेसे ममत्वके लिये महान लाभसे हाथ धो बैठते हैं अथवा प्रमादी बनकर लोगोंको सन्मार्गके उपदेश करनेके अपने कर्त्तव्यको भूल जाते हैं, उनपर आक्षेपद्वारा प्राचीन पद्धतिके अनुसार उनको उपदेश किया गया है।
अलबत्त, जो संयमको अनुपयोगी बड़े परिग्रहको साथमें रखते हैं और जो संसारके विषयोमें आसक्त रहते हैं उनके लिये तो यहां स्थान भी नहीं है । they have no + locus standi 'here . यह समझमें भी नहीं आता कि वे यति, श्रीपूज्य या त्यागी क्यों कर पुकारे जाते हैं। धर्मके नामपर भाजीविका चलानेवाले, आश्रित भक्तोंको धोखा देनेवाले, शास्त्रका दुरुपयोग कर मंत्र, डोरा या ढोंग कर लोगोंमें अपनी झूठी महिमा फैलानेबाले, सुस्त, प्रमादी, श्रावक लोगोंपर भाररूप, अधोगतिगामी, नाममात्रके महात्मा जब इस विषयपर वास्तवमें हितबुद्धिसे विचार करेंगे तब उनकी तथा उनके माश्रितोंकी स्थिति सुधर सकेगी; अन्यथा कदापि नहीं ।
लोकरंजन और स्तुति इच्छा निमित्त पहिले विवेचन हो चुका है फिर भी वह विषय बहुत आवश्यक होनेसे उसपर फिर अधिक विवेचन किया गया है। तेरे किस गुण के लिये तू ख्यातिकी अभिलाषा
करता है? न कापि.सिद्धिर्न च तेऽतिशायि,
मुने ! क्रियायोगतप:श्रुतादि। तथाप्यहङ्कारकदर्थितस्त्वं, ख्यातीच्छया ताम्यसि धिङ् मुधा किम् ॥१७॥