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________________ अथ त्रयोदशो यतिशिक्षोपदेशाधिकारः रुमहाराजके पाश्रित होनेसे जो जो लाभ होते हैं उनका विवरण गत अधिकारमें हो चुका है। अब र आवश्यक प्रश्न यह उठता है कि स्वयं गुरुको अपना जीवन कैसा बनाना चाहिये, इसलिये इस अधिकारमें यति योग्य शिक्षा दी जाती है । यति शब्दमें संसारसे विरक्त रहनेकी प्रतिज्ञा करनेवाले साधु, जति, महात्मा, श्रीपुज्य द्रव्यलिंगी और भट्टारक आदि सवोंका समावेश हो जाता है। इसीप्रकार यदि और शुद्ध अपेक्षासे देखें तो संसारभावसे विरक्त होनेवाले सबका समावेश इस शब्द में हो जाता है । इस अपेक्षामें केवल वेशमात्र नहीं देखा जाता है किन्तु उनका व्यवहार देखा जाता है । इस अधिकारमें प्रथम वर्गको लेकर शिक्षा दी गई है। यह वर्ग सुशिक्षित और विद्वान् होनेसे उनके लिये इस अधिकारमें विशेष विवेचन नहीं किया गया है । यह अधिकार यतिके अतिरिक्त अन्य सबोंको भी उपयोगी है, क्योंकि दंभी, दुराचारी, वेशधारी आदिको पहचानने में यह बहुत सहायता देता है। यह अधिकार सबसे अधिक विस्तृत है, क्यों कि उपदेशकको सुधारनेकी सबसे प्रथम आवश्यक्ता है । जिस शुमे. च्छासे सूरिजीने यह अधिकार लिखा है उसी हेतुसे उसपर विशेष विवेचन किया गया है । इसके अधिकारी इसपर विशेषतया मनन और निदिध्यासन करेगें इस अभिलाषासे इसका सामान्यतया ज्ञात कराकर अब आरम्भमें शुद्ध यति-मुनिकी
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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