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________________ अधिकार ] गुरुशुद्धिः [४१ हुए धर्मसे भी मोबके बदले संसारवृद्धि होती है। इस लोकमें संसारी जीवका रोगीके साथ, धर्मका रसायण के साथ और गुरुका वैद्यके साथ दृष्टांतदाष्टतिक सम्बन्ध है। स्वयं डूबे और दूसरोंको डुबानेवाला कुगुरु. समाश्रितस्तारकबुद्धितो यो, यस्यास्त्यहो मज्जयिता स एव । मोघं तरीता विषमं कथं स ?, तथैव जन्तुः कुगुरोर्भवाब्धिम् ॥३॥ " यह पुरुष तारने में समर्थ है ऐसे विचारसे जिसका माश्रय लिया जावे उस आश्रय लेनेवालेको जब प्राश्रय देनेवाला ही डूबानेवाला बन जाय तो फिर यह विषम (अथवा चपल ) प्रवाहको वह प्राणी किसप्रकार तैर सकता है ? इसीप्रकार कुगुरु इस प्राणीको संसारसमुद्रसे किसप्रकार तार सकता है ?" उपजाति. विवेचन-जिस जहाजमें कप्तान के भरोसेपर बैठे हैं वह कप्तान ही जब जहाजको डूबाने लगे तब उसका खुदका भी विनाश होता है और जहाजमें बैठनेवालोंका भी विनाश हो जाता है । संसारसमुद्रकी यात्रा करनेके लिये गुरुरूप कप्तान ( टंडेल ) के आश्रयसे चलनेवाले धर्मरूप जहाजमें बैठने के पश्चात् अयोग्य आचरण या मदिरापान करनेवाला कप्तान जब जहाजको डूबाता है तब खुदका और अन्य सबोंका विनाश हो जाता है । इसलिये गुरुकी बराबर परीक्षा करनी चाहिये और इसके पश्चात् उसे अपना आधुनिक तथा भावी जीवन सौंप देना चाहिये । __ . जो गुरुका नाम धारणकर चैबर, छत्रकी शोभा उपरान्त
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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