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________________ ३३२] अध्यात्मकल्पद्रुम [नवों निग्रहका परम साधन है । प्रवृत्तिवाले पुरुषको तो यदि निरान्त मिले तो कुछ झगड़ा कर बैठे; इसलिये क्रिया बहुत उपयोगी है इतना ही नहीं परन्तु अत्यन्त आवश्यक है। इसप्रकार काय. योगपर विजय प्राप्त करनेका उपदेश किया गया है। इस संसारमें कोई भी वस्तु सदैव रहनेवाली नहीं हैसर्व नाशवंत है ( अनित्य ), इस जीवको मरते समय कोई बचा. नेवाला नहीं ( अशरण ), संसारकी रचना विचित्र है ( भव ), यह जीव अकेला आया है और अकेला ही जायगा ( एकत्व), अन्य सबोंसे भिन्न है (अन्यन्व), शरीर मल, मूत्र, विष्टा आदिसे भरा हुवा है (अशुचि ), मिथ्यात्व, अविरती, कषाय और योगसे कर्म बांधकर जीव संसारमें भटकता है ( भाभव ), परन्तु वह ही जीव यदि समता रक्खे-मन आदिका निग्रह करे तो कर्मबन्धनको रोकता है (संवर), और तपस्या करे तो निकाचित कमोंसे भी मुक्त हो जाता है (निर्जरा ), चौदह राजलोकोंका स्वरूप विचारे योग्य है ( लोकस्वभाव ), सम्यक्त्व पाना सचमुच दुर्लभ है ( बोधी ), धर्मको बतलानेवाले अनेकों हो गये हैं किन्तु अरिहंत महाराज समान निरागी धर्म बतानेवाले बहुत कम है ( धर्म )। इसप्रकार बारह भावनाओंको बारम्बार भाना और उनपर विचार करना मनोनिग्रहका तीसरा साधन है । इस उपायसे मनपर अंकुश लग सकता है। शुभ प्रवृत्तिका शुभ और अशुभ प्रवृत्तिका अशुभ फल होता है इस सम्बन्धका विचार करना, आत्मनिरीक्षण करना, आत्मावलोकन करना मनोनिग्रहका चौथा उपाय है । जो प्राणी अपनी प्रवृत्ति पर विचार करता है उसका शीघ्र ही मनोनिग्रह होजाता है । यहाँ मनोनिग्रहके चार उपाय बतलाये गये हैं। शास्त्राभ्यास, चारित्र और क्रिया शुभ वर्तन, भावनाका भाना
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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