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________________ अधिकार ] चित्तदमनाधिकार [३१७ योनी में भटकता रहता है । इसीलिए प्राप्त किये हुए शुभ जहाजको छोड़ देनेवाले प्राणीको मूर्ख कहा गया है। अपना कर्तव्य बजाने निमित्त पुरुष अनेकों समय ऐसे उत्तम प्राप्त हुए प्रसंगोंपर ध्यान नहीं देता है, उनकी उपेक्षा करता है और उनको इरादेपूर्वक छोड़ देता है। वस्तुस्थितिको देखते हुए वे गत प्रसंग फिरसे हाथमें नहीं आते हैं और इस. लिये ऐसा करनेसे एक बड़ा भारी लाभ हाथसे निकल जाता है। मन हमको संसारसमुद्रमें किस प्रकार फेंक देता है ? यह एक अनुभवसिद्ध बात है। मनुष्यमें कल्पना तथा तर्कशक्ति ये दो मानसिक शक्तियें होती हैं और उन्हीं दोनों पर कार्यरेखा अंकित होती है। जबतक तर्कशक्ति-विचारशक्तिका सामर्थ्य अधिक होता है तब तक तो कार्य भलिभाँति होते रहते हैं; परन्तु कितनी ही बार दोनों होती हैं अर्थात् एक कार्य करनेसे पहले कल्पनाशक्ति अनेक प्रकारके संकल्प करती है। वह बतलाती है कि शुभ कार्य में न चाही हुई आफतें आजायगी और कभी कभी तो बड़े बड़े पहाड़ खड़े कर देती है। इस कल्पनाके वशीभूत होकर अल्पमति जीव भविष्यकालका बिना विचार किये हुवे ही कार्यरेखा अंकित कर देता है जिससे वह वास्तविक लाभके स्थानमें दिखाई देनेवाले लाभकी भोर अर्थात् भविष्यकालमें लाखों समय तक चलनेवाले लाभके प्राप्त होने के स्थानमें थोड़ेसे तात्कालिक लाभकी ओर ही लक्ष्य रखता है। ऐसे मनके वशीभूत हुए प्राणी धर्मभ्रष्ट होजाते हैं और संसारसमुद्र में भटकने लगते हैं । सुज्ञका यह कर्तव्य है कि मनको निरंकुश कल्पना न करने देवे, उसपर ऊँची तर्कशक्तिका अधिकार रखना चाहिये । ऐले विद्वान् गुरुके अंकुश नीचे विकस्वर हुआ मनरूप बालक जब बड़ी आयु प्राप्त करता है तब कूर्मापुत्र के समान संसारमें प्रतिष्ठा प्राप्त
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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