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________________ अधिकार ] शास्त्राभ्यास और वर्तन [२७९ करते हैं, कितने ही कल्पना करके काव्य-रचना कर कविकी बड़ाई पाकर पानंदका अनुभव करते हैं और कितने ही ज्योतिषशास्त्र, नाट्यशास्त्र, नीतिशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र, धनुर्वेद भादि शास्त्रोंके अभ्यासद्वारा प्रानंदित होते हैं। किन्तु भानेवाले भवके हितकारी कार्यकी ओर यदि वे प्रज्ञ (अथवा बेपरवाह) हो तो हमें तो उन्हे पेटु (पेट भरनेवाले) ही कहना चाहिये ।" शार्दूलविक्रीडित. विवेचन-ऊपरके श्लोकमें कई हकीकतोंका वर्णन किया गया है । कितने ही न्याय ( Logic ) की कोटिमें गहरे उतरनेमें आन्नद मानते हैं, जबकि कई कवि बनते हैं, कितने ही जोशी, नाटककार, राजद्वारीनीतिमें कुशल, सामुद्रिकज्ञानमें कुशल, शस्त्रविद्यामें कुशल और कितने ही रसायनशास्त्री ( Chemist ), minertiair ( Statistician ), geiriant (Economist ) खगोलवेत्ता ( Astronomer), भूतलवेता (Geologist) वनस्पतिविद्याकुशल ( Botanist), गणितशास्त्रमें प्रवीण ( Mathamatician ), वैयाकरण ( Grammarian) आदि आदि होते हैं; उद्योग, गुरुकृपा और क्षयोपशम अनुसार विद्वत्ता प्राप्त करते हैं; परन्तु यदि उनको भवका भय नहीं है तो आनेवाले भवमें हितकारी धर्मानुष्ठान नहीं कर सकते हैं और धर्मानुष्ठान किये बिना आनेवाले भवके लिये तैयारी नहीं हो सकती है और ऐसा होनेपर वे धर्मी होते हुए भी धर्मी होनेका देखावमात्र करते हैं। इसप्रकार हो तो जानना चाहिये कि वे पुरुष केवल उदरपूर्ती करनेवाले ही हैं और कालकी सपाटिमें लगनेवाले पवनके अनुसार महंकार करनेवाले हैं । अष्टकजीके टीकाकार कहते हैं किअविसेसिया मह चिय सम्मदिस्सि सा मइनाणं । मह अनाणं मिच्छाविहिस्स मुयंपि एमेव । -
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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