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________________ २५४ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [ सप्तम् को जा घेरा डाला । नन्दराजा जब लड़नेको आया तो चाणक्यकी सैनामें खलबली मच गई और सैनिक इधरउधर भगने लगे । चाणक्य भी भगा तो राजाने उसको मारने निमित्त सामन्तोंको भेजे। चन्द्रगुप्तको एक कुएमें छिपा कर स्वयं साधुका बेष धारण कर चाणक्य कुएपर बैठ गया और सामन्तोंसे कहा कि चन्द्रगुप्त अन्दर चला गया है। सामान्तगणोंने जब हथियार बाहर छोड़ कर कुएमें प्रवेश किया तो चाणक्यने लघुलाघवी कलासे उनके शस्त्रोंसे उन्हीको मार डाला। इसप्रकार अनेक कष्टोंसे चन्द्रगुप्त की रक्षा करके स्वयं भी युक्तिद्वारा बच गया । चाणक्य नीतिशास्त्रमें बड़ा प्रविण था । युक्ति किस प्रकार करना, छल किस प्रकार करना और किसी भी प्रकार के प्रतिकुल संयोगोंमें अपना कार्य किस प्रकार सिद्ध करना यह वह बहुत अच्छी तरह समझता था । एक पर्वत नामके राजाको अपना बना कर नन्दराजा पर फिरसे आक्रमण किया, किन्तु इस समय सीधा पाटलीपुत्रपर घेरा न डाल कर समीपवर्ति गाँवोंको जीतने लगा। नन्दराजा हार गया और चन्द्रगुप्त सिंहासनारूढ हुआ । पर्वत राजा भी विषकन्याके संयोगसे मर गया जिससे उसका भी भय जाता रहा । पाटलीपुत्रकी प्रजाको बहुतसा कर देना पड़ा जिससे प्रजामें असन्तोष फैल गया और चन्द्रगुप्तसे विनति की गई। चाणक्यने विचार किया कि यदि प्रजा असन्तोषी होगी तो राज्य छोड़ कर चली जायगी, इस लिये उसने लोगोंका कर माफ कर दिया । धन एकत्र करनेका दूसरा कोई उपाय सोचते सोचते उसने देवताओंके पाससे अजय पासे प्राप्त किये । ग्रामके प्रतिष्ठित सेठोंको बुला कर उनके साथ जुआ खेलने लगा । वह स्वयं तो बड़ी रकम दावपर लगाता था किन्तु उसकी जीत हो जानेपर अपने दावके प्रमा
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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