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________________ अधिकार] कषायत्याग उपस्थित होने पर उसको न करनेसे मनको कितना आनन्द प्राप्त होता है ? और दूसरा पुरुष कितना लज्जाकर क्रोध करनेके स्था. नमें क्षमा प्रार्थना करता है, यह सबके अनुभवकी बात है । इसके उपरान्त परभवमें तो उसको इससे बहुत लाभकी प्राप्ति होती है। __इसप्रकार कषाय त्यागसे सबको सब समय आनन्दकी प्राप्ति होती है और कषायसे उद्वेग होता है । इस स्थितिपर विचार करके दोनोमेंसे एक जो तुझे उत्तम जान पड़े उसको व्यवहारमें ला। कषायत्याग-माननिग्रह-बाहुबलि. सुखेन साध्या तपसां प्रवृत्ति र्यथा तथा नैव तु मानमुक्तिः। आद्या न दत्तेऽपि शिवं परा तु, निदर्शनाद्बाहुबलेः प्रदत्ते ॥ ७ ॥ " जिसप्रकार तपस्यामें प्रवृति करना सहज है उसप्रकार मानका त्याग करना सहज नहीं है । केवल तपस्याकी प्रवृत्ति मोक्षकी प्राप्ति नहीं करा सकती है, किन्तु मानका त्याग तो बाहुबलिके दृष्टान्तके समान मोक्षकी अवश्यमेव प्राप्ति करा सकता है।" उपजाति. विवेचन-दुनियाका अवलोकन करनेवालेको ज्ञात होगा कि तपस्यामें प्रवृत्ति करना यह कठिन अवश्य है, किन्तु उसमें एक वार प्रवृति होनेके पश्चात् अधिक कठिनता नहीं होती है। परन्तु उसका तथा दूसरी किसी भी वस्तुका, गुणका तथा धनका अहंकार न करना यह बहुत ही कठिन बात है; इतनी अधिक कठिन है कि मनुष्य न जानते हुए भी मान-मगरुरी कर डानते हैं। जब अपनी नम्रताको मुख्यतया बताने जाते है। तब
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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