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पर करीब नवहजार स्त्री-पुरुष एकत्रित हुए । वहां से राजमल परकानीने केशरीयाजी का संघ निकाला उस में महाराजसाहब को साथ आनेका बहुत आग्रह किया गया इस से संघमें गये और केसरियाजीकी यात्रा कर रतलामके श्रावकोंकी विनती होनेसे उनके साथ रतलाम पधारे और वहां करीब पचीस दिवस बिराजे । वहांसे वडनगर होकर उज्जैन पधारे वहां अवंती पार्श्वनाथके दर्शन किये । वहां शरीरकी अस्वस्थता होने से दो मास तक बिराजना हुआ। तत्पश्चात् वहांसे विहार कर वडनगर पधारे । वहांइन्दोरकी विनति आनेसे इन्दोर पधारे। वहां नवीननिर्मित अष्टापद पर्वतकी प्रतिष्ठा कराई । उस प्रसंगपर अट्ठाइ महोत्सव तथा शान्तिस्नात्र हुए फिर संघकी विनति होनेसे सम्वत् १९८२का चातुर्मास वहां किया। वहांसे विहार कर मांडवगढ़, भोपावरकी यात्रा कर राजगढ, दाहोद, गोधरा, होकर कपडवंज पधारे । वहांपर अहमदावादवालोंकी विनति आई इसलिये पंन्यासश्री वहांसे विहारकर आंतरसुबा, बहीयल, नरोडा होकर अहमदाबाद पधारे और सम्वत् १९८३का चातुर्मास वहां किया । व्याख्यानमें स्थानंगसूत्रकी वाचना शुरू की। फिर वहांसे विहार कर श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथजीकी यात्राकर पूज्य गुरु महाराजके साथ राधनपुर पधारे और सम्वम् १९८४ का चातुर्मास वहां किया । इस चातुर्मासमें साधुओंको लोकप्रकाश, नंदीसूत्र तथा प्रकरणोंकी वाचना प्रदान कर वहांसे गुरुमहाराज के साथ साथ विहार कर जुनागढ, पालीताने होते हुए अहमदावाद पधारे और सम्वत् १९८५का चातुर्मास डेलाके उपाश्रयमें किया और व्याख्यानमें समवायांगसूत्रकी वाचना शुरू की। वहांसे विहार कर पानसर, महेसाणा, तारंगाजी होते हुए खेरालु पधारे । वहां सीपोर गांवकी विनति आइ इसलिये पंन्यासश्री सीपोर पधारे और वहां संघका अत्यन्त आग्रह होनेसे