SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० मोक्ष क्या है ? कहाँ है ? किसको प्राप्त हो सकता है ? इसके देखनेका, जाननेका अथवा समझनेका प्रसंग ही उसको नहीं आता है । इस सबका कारण यही है कि उसने विषयको सुख मान रक्खा है, किन्तु यह वास्तविक सुख नहीं है। उसके स्थानमें यदि शांत प्रदेश हो, चारों ओर दश दश गाँवों में मनुष्योंकी वस्ती न हो, अलण्ड शान्तिका साम्राज्य हो और शांतिका भंग करनेवाला कोई भी न हो, ऐसे अरण्यमें बैठकर धर्मशास्त्र अध्ययन और मनन करनेसे गहरे अन्तःकरणमें जो मानन्द होता है उसका वर्णन करना लेखनीकी शक्तिके बाहर है। यह स्वभाविक आनन्द है । सर्व देवताओंके इन्द्रियजन्य सुखके स्थानमें अनुत्तर वैमानके देवताओंके झानानंदका सुख असाधारण गिना जाता है। इसप्रकार इन्द्रियोंके सुखमें वास्तविक सुख तो है ही नहीं, किन्तु इसके भी उपरान्त संसाररूप वनमें ये ऐसी विचित्र गति कराती है कि जिसका सच्चा सञ्चा हाल जानना हो तो उपमितिभवप्रपंचको दूसरेसे सातवें प्रस्ताव तक पढ़े। इन्द्रियें अपनी होकर अपना ही घात करती हैं, यह बड़ा भारी कष्ट है, कारण कि इसके भी उपरान्त यह समझदार प्राणी भी अनेकों बार नहीं जान सकता कि ये कब अपना घात करनेवाली है। विषय परिणाममें हानिकारक हैं. आपातरम्ये परिणामदुःखे, • सुखे कथं वैषयिके रतोऽसि । ? जड़ोऽपि कार्य रचपन् हितार्थी, करोति विद्वन् यदुदर्कतर्कम् ॥२॥
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy