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________________ करनेका विचार करनेवालेको महानिशीथ सूत्रमें बताये हुवे विचारोंके अनुसार यह श्लोक लिखा गया है, ऐसा एक विद्वान् मुनि महाराज इस प्रसंगके लिये कहते है । इस श्लोकके साथ साथ निम्नलिखित श्लोकको पढ़ना और श्लोकमें आये हुए अति शुद्ध शब्दों तथा ग्रन्थकर्ताकी अपेक्षा पर विशेष ध्यान देना अत्यावश्यक है। उपार्जित धनका व्यय कैसे करना? क्षेत्रवास्तुधनधान्यगवाश्चै मोलितैः सनिधिभिस्तनुभाजाम् । क्लेशपापनरकाभ्यधिकः स्यात्, को गुणो न यदि धर्मनियोगः ॥५॥ " प्राप्त अथवा प्राप्त होनेवाले क्षेत्र, वस्तुओं (घर आदि ), धन, धान्य, गाय, घोडा और भंडारका उपयोग जो धर्मनिमित्त न हो तो उससे केश ( दुःखो), पाप और नरकके सिवा अन्य क्या विशेष गुण हो?" स्वागतावृत्त. भावार्थ:-अनेकों पुण्यवान् जीवोंको जब पैसे मिलते हैं तो अधिक उपार्जन करने तथा उपार्जित धनकी रक्षाके लिये अत्यन्त श्रम करते हैं और अनेकोंका आश्रय लेते हैं। द्रव्य. वाले कुटुम्बमें झगडे होते हैं और झगड़ोसे दुर्ध्यान होता है और दुर्ध्यानसे दुर्गति होती है तो फिर धनसे क्या लाभ है ? सात क्षेत्र, गरीब बन्धुओंके आश्रय निमित्त, स्त्रीकेलवणी, ऊँची केलवणी, धार्मिक केलवणी या संस्कृत केलवणीके उत्तेजन, निरवद्य औषधालयों, स्कूल, छात्रालय और अनाथालय आदि
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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