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अथ तृतीयोऽपत्यममत्वमोचनाधिकारः
साधन - स्वरूप
अ ध्यात्म ज्ञान के रसिक जीवों को समता की आवश्यकता होती है और उसके ममत्वत्याग की प्रथम आवश्यकता होती है । स्त्री के पश्चात् इस प्राणी को पुत्र का ममत्व छोड़ना
बहुत कठिन होजाता है, अतः इस पुत्रपुत्री ऊपर के ममत्वत्याग बतानेवाले तीसरे द्वार का संक्षेप से वर्णन किया जाता है । पुत्रपुत्री बन्धनरूप होने का दर्शन.
मा भूरपत्यान्यवलोकमानो, मुदाकुलो मोहनृपारिणा यत् ।
चिचिप्सया नारकचारकेऽसि,
दृढ़ निबद्ध निगडैरमीभिः ॥ १ ॥
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तूं पुत्रपुत्री को देख कर प्रसन्न मत हो, कारण कि मोहराजा नामक तेरे शत्रुओंने तुझे नरकरूप बन्दीखाने में डालने की अभिलाषा से इस ( पुत्रपुत्रीरूप ) लोह की जन्जीर से तुझे खस कर बांधा है ।
उपजाति.
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