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________________ १२९ करते हैं । कवि भी मनुष्य ही थे और मनुष्य के कोमल हिस्से में मोह निवास करता है, उसके वशीभूत होजाने से मोह का उसपर अपनी शक्ति का अजमाना स्वाभाविक ही है। ___इस श्लोक का भाव विचारने योग्य है । संसार में भ्रमण करानेवाले कर्मों में मोहनीय कर्म बहुत तीव्र है, बलवान है और इसका सामना करना भी जरा कठिन है। उपामितिभव प्रपंच कथा के कर्त्ता सिद्धर्षिगाण और उसीप्रकार अन्य महात्मा भी कर्मों के अन्दर इसको राजाकी पदवी देते हैं, और अन्य कर्मों को इसके प्रधान, सिपाही सदृश बतलाते हैं। धर्म तथा धन की हानि करनेवाले मोहनीय कर्म के प्रभाव से धर्म तथा धन से रहित होकर यह जीव संसार में व्यर्थ भटकता रहता है । संसार को छोटा बनाने, भवके फेर मिटाने, स्वस्थान प्राप्त करने और निरतिशय आनंद मिलने के लिये स्लीपर से ममत्व को कम करने का यहाँ उपदेश किया गया है। सांसारिक भोगों को भोगनेवालों को भी उसका परित्याग करते समय शालिभद्र और स्थूलि भद्रादि के चरित्रोंको विचारना और संसार में न पड़े हों उनको पड़ने से पहिले नेमनाथ और मल्लिनाथादिक के चरित्रों को विचारना अत्यावश्यक है। भविष्य की पीड़ाओं का विचार करके मोहको . ____कम करना. विमुह्यसि स्मेरदृशः सुमुख्या, मुखेक्षणादीन्यभिवीक्षमाणः ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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